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निधान यदि मिल सकता है तो वह अप्रमत्तता से ही मिल सकता है। जिस पावर हाउस मे वैज्ञानिको द्वारा स्थान-स्थान मे "खतराखतरा" लिखा हुआ होता है. जब कोई मानव दर्गक वनकर उसमे प्रवेश करता है तो वह सब तरह से सावधान रहता है, क्योकि अपने को खतरे से बचाने मे ही उसकी बुद्धिमत्ता है। जहा चोर-उचक्के जेवकतरे चारो ओर घूम रहे हो, वहा पर यदि कोई व्यक्ति अपनी वस्तुओ की रक्षा सावधानी से करता है तो इसी मे उसका चातुर्य माना जाता है । जिस साधक के पास विश्व मे सर्वोत्तम एव सुदुर्लभ रत्नत्रय हो उन सबकी रक्षा वह अप्रमाद से करता है. इसी मे उसका चातुर्य है । अप्रमाद सवर है और सवर धर्म है । साधक को भारण्डपक्षी की तरह सदव अप्रमत्त रहना उचित है । प्रमाद के किसी भी रूप का कभी भूल कर भी प्राचरण न करना ही अप्रमाद सवर है ।
४ कषाय-यह जैन सस्कृति का एक पारिभाषिक शब्द है। जिससे ससार की वृद्धि हो, जन्म-मरण की परम्परा अविच्छिन्न बनी रहे और जिससे पाठ प्रकार के कर्मों का वध हो, वही कषाय है। जैसे हरड, बहेडा, पावला इनके समुदाय की त्रिफला सजा है, अन्य किन्ही तीन फलो का समूह त्रिफला नहीं हो सकता, वैसे ही क्रोध, मान, माया और लोभ इन चार विकारो के समूह का नाम कपाय है। पाय के चार रूप हैं-अनन्तानुवधी, अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यानावरण और सज्वलन ।।
जिस कपाय के प्रभाव से जीव अनन्त काल तक ससार मे भ्रमण करता है, उस कषाय को अनन्तानुबंधी कपाय कहते है। यह कषाय अत्यन्त निकृष्ट स्तर का है और जीवन भर के लिए बना रहता है। इसमे वतमान जीव नरकगति के योग्य कर्मो का वध करता है तथा सम्यग्दशन का घात करता है ।। योग : एक चिन्तन]
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