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१. मद्य प्रमाद - मद्य यादि नशीले पदार्थों का सेवन करना, नशे मे चूर रहना प्रमाद है ।
२ विषय प्रमाद इन्द्रियो के विषयो में आसक्ति रखना विषय-प्रमाद है ।
३ कषाय- प्रमाद - राग-द्वेष के वशीभूत होना कषाय प्रमाद है ।
४ निद्राप्रमाद - निद्रा के अधीन रहना, ज़रूरत से ज्यादा सोना प्रमाद है ।
५ विकथा - प्रमाद - घर्मकथा को छोड़कर शेष सभी कथाओ का समावेश विकथा मे हो जाता है। काम वासना उद्दीपक बाते करना और खाद्य पदार्थो के खाने की लालसा प्रकट करना । खानेपीने की बाते करने से अकल्पनीय, अनेषणीय ग्राहार की इच्छाए जाग उठती हैं । अखबारी दुनियां मे अमूल्य समय नष्ट करना, राजा की निन्दा-स्तुति मे या इधर-उधर की व्यथ की बातो मे समय नष्ट करना विकथा है । विक्था से सम्यग्दर्शन, सम्यग्गज्ञान और सम्यक्चारित्र इनमे से कोई भी अतिक्रम आदि दोप से दूपित हो सक्ता है, अत विवयां भी प्रमाद ही है । प्रमाद के वशीभूत होकर जीव कुछ का कुछ करता है, कुछ भी बोल देता है और कुछ का कुछ सोचता है । प्रमाद से बचने का उपाय अप्रमाद है ।
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अप्रमाद सवर है, इसकी विद्यमानता मे जीवन के किसी भी क्षण मे प्रमाद का प्रवेश नही हो सकता ।' सातवे गुणस्थान से लेकर श्रागे के सभी गुणस्थानो मे साधक प्रमादी कहलाता है । अप्रमाद अवस्था मे ही धर्मध्यान की पूर्णता होती है। मानव का सबसे बडा हित श्रप्रमाद मे रहने से ही है ।' आध्यात्मिकं गुणयोग एक चिन्तन
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