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१६.सुविधि
सविधि यह शब्द अनेकार्थक है। चौबीस तीर्थंकरों मे नोवे तीर्थकर का नाम सुविधि था । सुन्दर अनुष्ठान एव पावन क्रियाकलाप अर्थात धर्मानुष्ठान का श्रपर नाम भी सुविधि है। जिस साधना की धारावना बहुत अच्छी विधि से की जाए उसे भी सुविधि कहते हैं।
किसी शुभ कार्य को करने की महत्ता इसी मे है कि वह वैज्ञानिक एव कलापूर्ण विधि से किया हुआ होना चाहिए । विश्व मे सव से मुश्किल काम अपना सुधार है और सब से आसान कार्य दूसरो की नुक्ताचीनी है । जो गुभ कार्य के लिए प्रगसा के भूखे रहते है उनके हृदय मे पुण्य-कार्य के प्रति वास्तविक प्रीति नही होती, क्योकि उनके हृदय मे झूठी प्रशसा का आकर्पण समाया रहता है।
जो अपनी छलकती हुई पाखो से, पवित्र विचारो से मधुर वाणी से और शुभ कार्यों से प्रानन्द बरसाता है, हमेशा उसी को लोग प्रसन्न रखते हैं। सबसे प्रिय है करना और न कहना तथा सबसे अप्रिय है-कहना और न करना।
जव मानव के अन्त करण मे धर्म के प्रति श्रद्धा और प्रेम का उद्रेक बढ़ जाता है तब उससे जो भी कार्य होता है वह भलाई का ही होता है, क्योकि धर्म का प्रेम परिश्रम को हल्का ५६]
[ योग एक चिन्तन