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विनय का स्वरूप और उसके भेद-
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धर्म की ओर झुकाव का होना या अपने आप को धर्मसाधना एव गुरुजनो के लिये अर्पित कर देना विनय है, अथवा जिसके द्वारा सम्पूर्ण दुखो के कारणीभूत आठ कर्मो का उन्मूलन एव क्षय हो वह विनय है, अथवा अपने से बडे तथा गुरुजनो का देश और काल के अनुसार सत्कार सन्मान करना विनय है । इसके सात भेद हैं १ ज्ञान-विनय २ दर्शन- विनय, ३ चारित्रविनय, ४ मनो- विनय, ५ वचन-विनय, ६ काय-विनय और
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७ लोकोपचार - विनय ।
१. ज्ञान-विनय
ज्ञान और ज्ञान के ग्राधार भूत ज्ञानी पर श्रद्धा रखना, उनके प्रति भक्ति एवं बहुमान दिखाना, उनके द्वारा बताए हुए तत्त्वो पर भली- भान्ति विचार एव मनन करना, निरन्तर ज्ञान का अभ्यास करना और विधिपूर्वक ज्ञान को ग्रहण करना, ज्ञान-विनय है | इसके पाच भेद हैं, यथा - मतिज्ञान- विनय, श्रुतज्ञान-विनय, अवधिज्ञान- विनय, मन पर्यवज्ञान- विनय और केवल - ज्ञान - विनय ।
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२ दर्शन - विनय
देव - अरिहन्त ( वीतराग) गुरु-निर्ग्रन्थ, केवलि-भाषित धर्म श्रीर जिनवाणी इन सब पर श्रद्धा रखना सम्यग्दर्शन है । जिनको भक्ति और श्रद्धा से सम्यग्दर्शन की प्राप्ति हो चुकी है, जिनका ज्ञान स्वच्छ एव निर्मल हो गया है, उनके प्रति विनय का होना दर्शनविनय है | इसके मुख्यतया दो भेद है, सुश्रूपाविनय और अनाशातना - विनय । इनमे सुश्रूषा विनय के दस भेद हैं । जैसे कि
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योग एक चिन्तन ]
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