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जो दौडता हुया चलता है वह गति-चपल है। जो वैठा-बैठा हाथ पैर मारता रहता है वह स्थान-चपल है ।
जो अमत् बोलता है, कडा या खा बोलता है, विना सोचेविचारे बोलता है, अवसर निकल जाने के बाद यह कार्य अमुक देश मे और अमुक काल मे यदि किया जाता तो अच्छा होता ऐसा कहने वाला भापा-चपल कहलाता है।
जिसके भाव दूध के उफान की तरह कभी बढते हैं और कभी उतर जाते हैं, प्रारम्भ किए हुए सूत्र और अर्थ को बीच मे ही छोडकर दूसरे सूत्र और अर्थ का अध्ययन करने लगता है वह भाव-चपल है। साधक को चपल नही स्थित-प्रज्ञ होना चाहिए।
३. अमाई - सुविनीत मायावी नही होता। वह गुरु से या अपने साथियो से कभी भी छल-कपट नहीं करता, वह सदैव सब से निष्कपट व्यवहार करता है। निष्कपट व्यक्ति सब को अच्छा लगता है । जो दूसरो के द्वारा किए जाने वाले कपट को समझता है, किन्तु स्वय कपट नहीं करता वही अमायी कहलाता है, अनजान या मदमति को अमायी नहीं कहा जा सकता।
४. अकुऊहले-खेल, तमाशा, इन्द्रजाल, नट-नाटक आदि इन्द्रियो के विपय और चमत्कारिणी विद्याए पाप-सवर्धनी होती है। सुविनीत मे कभी कुतूहल अवगुण नहीं होता, वह उन्हे देखने के लिए कभी उत्सुक नही होता । अमर्यादित उत्सुकता साधक को धर्म मे स्थिर नही रहने देती।
५ अप्प चाहि क्खिवई-सुविनीत किसी का तिरस्कार नही करता । अल्प शब्द थोडे और प्रभाव का वाचक है । अयोग्य को धर्म मे प्रेरित करने की दृष्टि से थोडा सा उसका तिरस्कार भी हो
योग एक चिन्तन