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७ वात्सल्य-मोक्ष के कारणीभूत धर्म मे और अहिंसा मे श्रद्धा रखना तथा. सहमियो मे वात्सल्य-भाव रखना, पाहारपानी, वस्त्र एव औषध आदि से उनकी सेवा करना, विनय करना भक्ति और प्रीति के भाव रखना वात्सल्य है।
२. प्रभावना-जैसे भी हो जिन-शासन की महिमा बढाना, तीर्थ की उन्नति हो वैसे कार्य करना, अपनी आत्मा को ज्ञान, दर्शन और'चारित्र से प्रभावित करना प्रभावना है। ये सम्यग्दर्शन के आठ प्राचार है। साधक को इनकी आराधना नित्यप्रति करनी चाहिए। सम्यग्दृष्टि के रूप
आत्म-शुद्धि, दृष्टि-गुद्धि, उपाय-गुद्धि और ध्येय-शुद्धि इन चारो का समावेश सम्यग्दृष्टि मे होता है ।
कषायो की मन्दता के कारण प्रात्मा की अन्तर्मुखी वृत्तिका होना प्रात्म-गुद्धि है।
सत्य के परीक्षण के लिए द्वष तथा पक्षपात से दूर रहकर प्रत्येक वस्तु को अथवा प्रत्येक विचार को तटस्थ वृत्ति से देखने और समझने की क्षमता ही दृष्टि-शुद्धि है। ... वस्तु के जानने के जितने भी उपाय हैं उनके निर्दोष तथा वैज्ञानिक परीक्षण ही उपाय-शुद्धि कहा जाता है । ___ - साधक के सामने किसी महान लक्ष्य का रहना ध्येय-शुद्धि है।
- इनमे से पिछली तीन गुद्धिया तभी जीवन मे आ सकती हैं, जबकि पहली अर्थात् प्रात्मगद्धि प्राप्त हो जाय, उसके विना अन्य शुद्धियो की प्राप्ति असम्भव ही होती है।
' सम्यग्दृष्टि साधक की साधना निर्दोप होनी चाहिये। साधना योग एक चिन्तन ]
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