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आदि का वर्णन न करे, क्योकि उनकी कथायो, विकथाओ मे रुचि लेने पर ब्रह्मचर्य का भग होना स्वाभाविक है। यह सर्व-प्रसिद्ध है कि नीबू अादि खट्टी वस्तु की बात करने मात्र से मुह मे पानी आए विना नहीं रहता।
३ तोमरी वाड-विजातीयो के साथ एक आसन पर न वैठे। जिस आसन या स्थान पर पहले से ही विजातीय आसीन हो उसके उठ जाने पर भी दो घडी तक वहा वैठने का प्रयास न करे। जैसे सतप्त भूमि पर रखे हुए घी के घडे मे घी पिघले बिना नहीं रह सकता, वैसे ही ब्रह्मचर्य भी वहा पिघल जाता है ।
४ चौथी बाड़-विजातीयो के आकर्षक मनोहर अग-उपाङ्गो को आसक्ति पूर्वक न देखे और दृष्टि के साथ दृष्टि भी न मिलाए । क्योकि ऐसा करने पर ब्रह्मचर्य नष्ट हो जाता है। कच्ची आखो से सूर्य को देखने पर श्राखो को नुकसान पहुंचता ही है।
५ पांचवीं वाई-दीवार से, पर्दे से, झरोखे से, खिडकी से अन्दर होने वाले विजातीयो के अश्लील गीत, रोने के शब्द, हसी मजाक, विलाप, वासनोत्तेजक शब्द आदि आसक्ति पूर्वक न सुने न देखे । क्योकि वादल की गर्जना सुनकर जैसे मोर नाचने लगता है वैसे ही मन भी अश्लील बातें सुनकर अश्लीलता की ओर अग्रसर होने लग जाता है।
६ छटी बाड़-गृहस्थ अवस्था मे जो काम-चेष्टाए देखी सुनी या की हैं, उनको पुन' स्मरण न करे, क्योकि भुक्त भोगो की स्मृति वासना को उत्तेजित कर ब्रह्मचर्य को भग कर देती है, जैसे अभीष्ट जन-धन के नष्ट होने पर जब-जब उनकी याद आती है तव-तब मन मे शोक उमडे बिना नहीं रहता। जिसका स्मरण योग एक चिन्तन ]
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