________________
किन्तु उनका मन क्रु द्ध होता रहता है, परन्तु वे क्रोध के भाव को वाहर प्रकट नहीं होने देते।
(ख) कुछ साधक आन्तरिक रूप से तो सर्वथा सहनशील रहते हैं, किन्तु बाहर से क्रोध करते हुए से प्रतीत होते है।
(ग) कुछ ऐसे साधक भी होते है जो आन्तरिक एवं वाह्य दोनो दृष्टियो से सहनशील होते हैं।
(घ) कुछ ऐसे हीन साधक भी होते हैं जो न शारीरिक । दृष्टि से सहनशील होते हैं और न मानसिक दृष्टि से। .
इनमे तीसरा रूप सर्वाधिक का है और चौथा रूप सर्वविरोधक का है। इसी प्रकार :
(क) कुछ साधक जिनमे अपनत्व होता है उनकी बात तो सहते हैं दूसरो की नहीं।
(ख) कुछ साधक दूसरो को बीत ‘या प्रहार को सह लेते है, किन्तु अपनो द्वारा किए गए व्यवहार को सहन नहीं करते हैं।
(ग) कुछ साधक न अपनों की सहते है और न दूसरो की सहते है।
(घ) कुछ साधक अपनों द्वारा किए गए प्रतिकूल व्यवहार ' को भी सहन करते हैं और दूसरो के दुर्व्यवहार को भी शान्त भाव से सहन कर लेते है।
इनमे पहला श्रेष्ठ, दूसरा कुछ श्रीप्ठ, तीसरा अत्यन्त निकृष्ट और चौथा श्रेप्ठतर माना जाता है । तितिक्षा के विना साधनाशील व्यक्ति का न तो समाज पर कोई प्रभाव होता है और न ही उसका जीवन आत्मोत्थान में सहायक हो पाता है। सहन शील व्यक्ति का मन आकुलता एव अशान्ति से रहित होने के कारण एकान रहता है, अत वह अपने साधना-मार्ग पर सहज स्वभाव से प्रगति करने में समर्थ होता है।
योग एक चिन्तन
३८]