Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
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उन्नीस
(ज) परिभाषेन्दुशेखर-यह ग्रन्थ वैयाकरणसिद्धान्तमंजूषा, महाभाष्यप्रदीपोद्योत तथा
बृहच्छब्देन्दुशेखर के बाद की रचना है क्योंकि इन तीनों ग्रन्थों का निर्देश
परिभाषेन्दुशेखर में मिलता है। (झ) लघुशब्देन्दुशेखर -१७२१ ई० से पूर्व । (अ) काव्यप्रदीपोद्योत- १७०० के बाद तथा १७५४ से पूर्व ।
यह सीमानिर्धारण, हस्तलेखों की तिथियों पर ग्राश्रित होने के कारण, बहुत कुछ आनुमानिक ही है।
परमलघुमंजूषा-वैयाकरणसिद्धान्तपरमलघुमंजूषा के समय के विषय में यहाँ कुछ नहीं कहा गया। सम्भवत: यह नागेश की सबसे बाद की रचना है-~-यद्यपि नागेश की कृति के रूप में यह अत्यन्त सन्दिग्ध प्रतीत होती है। इस सन्देह के दो प्रमुख कारण हैं। प्रथम यह कि, पूर्वार्ध के अध्यायों में लधुमंजूषा के अनेक सिद्धान्तों से बहुत कुछ साम्य होने पर भी, लघुमंजूषा के अनेक सिद्धांतों के ठीक विपरीत सिद्धान्तों का परमलधुमंजूषा में यत्र तत्र उल्लेख पाया जाता है। द्वितीय कारण यह है कि परमलघुमंजूषा के उत्तरार्ध में अनेक स्थलों पर कौण्ड भटट के वैयाकरणभूषणसार से पंक्ति की पंक्ति अक्षरशः उद्धृत कर दी गयी है, जिसकी प्राशा नागेश भटट जैसे असाधारण विद्वान् से नहीं की जा सकती । ऐसे स्थलों का विवरण आगे के पृष्ठों में दिया जा रहा है।
नागेश भट्ट-कृत तीन मंजूषा ग्रन्थ - सामान्य धारणा तथा हस्तलेखों के अन्तिम वाक्यों के अनुसार नागेश भटट ने तीन मंजूषा नामक ग्रन्थों की रचना की। प्रथमवैयाकरणसिद्धान्तमंजूषा, द्वितीय- वैयाकरणसिद्धान्तल घुमंजूषा तथा तृतीय वैयाकरणसिद्धान्तपरमलघुमंजूषा । ये तीनों ग्रन्थ क्रमशः मंजूषा, लघुमंजूषा तथा परमलघुमंजूषा के नाम से प्रसिद्ध हैं। इस सम्बन्ध में इन तीनों ग्रन्थों के प्रारम्भिक तथा अन्तिम वाक्य निम्न रूप में मिलते हैं। वैसिम० (प्रारम्भ)-नागेशभट्ट विदुषा नत्वा साम्बं सदाशिवम् ।
वैयाकरणसिद्धान्तमंजूषेयं विरच्यते ।। (सरस्वतीभवन पुस्तकालय हस्तलेख सं० ३९८२७ पत्र सं० १ क)
अन्त -वैयाकरणसिद्धान्तमंजूषेयं कृता मया । तया श्री भगवान् साम्बः शिवो मे प्रीयतामिति ।।
(वही, पत्र सं० १४२ क)
वैसिलम० (प्रारम्भ)-नागेशभट्विदुषा नत्वा साम्बशिवं लघुः ।
वैयाकरणसिद्धान्तमंजूषेयं विरच्यते ॥
(चौखम्बा संस्करण १६२७ पृ० १)
इस ग्रन्थ के अन्त में वैयाकरणसिसिद्धान्तलघुमंजूषा के स्थान पर सम्भवतः म्रान्तिवश वैयाकरणसिद्धान्तमंजूषा का नाम उल्लिखित है। इस भ्रान्ति के विषय में आगे विचार किया जायेगा।
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