Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
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अठारह
२६, रसमंजरीप्रकाश ३०. रामायणटीका ३१. लक्षणरत्नमालिका ३२. विषमपदी शब्दकौस्तुभटीका ३३. वेदसूक्तभाष्य ३४. वैयाकरणकारिका ३५ वैयाकरणभूषण (?) ३६. वैयाकरणसिद्धान्तमंजूषा ३७. व्याससूत्रेन्दुशेखर ३८. शब्दरत्न
३६. शब्दानन्तसागरसमुच्चय ४०. सुप्तिङन्तसागरसमुच्चय ४१. शब्देन्दुशेखर ४२. संस्कार रत्नमाला ४३. लघुसांख्यसूत्रवृत्ति ४४. सापिंड्यमंजरी ४५. सापिंड्यदीपिका ४६. स्फोटवाद ४७. नागोजीभट्टीय
इसी सूची में धर्मशास्त्र, काव्यशास्त्र, न्याय, योग, व्याकरण, ज्योतिष, मीमांसा, स्तोत्र इत्यादि अनेक विषयों के ग्रन्थ हैं। नागेश भट्ट की लधुमंजूषा तथा परमल घुमंजूषा, जो वैयाकरणसिद्धान्तमंजूषा के ही संक्षिप्त तथा संक्षिप्ततर रूप माने जाते हैं, का परिगणन इस सूची में नहीं किया गया। संभवतः वैयाकरणसिद्धान्तमंजूषा तथा वैयाकरणसिद्धान्तलधुमंजूषा इन दोनों को एक मान लिया गया है। चौखम्बा संस्कृत सीरीज से अनेक खण्डों में लघुमंजूषा प्रकाशित हुई थी। उसमें प्रायः इस पुस्तक को वैयाकरणसिद्धान्तमंजूषा ही कहा गया है। परन्तु वास्तविकता यह है कि ये तीनों ग्रन्थ स्वरूपतः पर्याप्त भिन्न हैं। इन तीनों ग्रन्थ-मंजूषाओं के पारस्परिक तुलना एवं समीक्षा की नितान्त आवश्यकता है।।
कृतियों का कालक्रम-श्री पी० के गोडे ने नागेश भट्ट की विभिन्न कृतियों के उपलब्ध हस्तलेखों में दी गयी तिथियों के आधार पर, इन कृतियों के काल-विषयक लगभग अन्तिम सीमा का निर्धारण निम्न रूप में किया है :(क) वैयाकरणसिद्धान्तमंजूषा तथा महाभाष्यप्रदीपोद्योत-१७००-१७०८ ई० । (ख) भानुदत्तकृत रसमंजरी की नागेशभट्ट-कृत टीका रसमंजरीप्रकाश-- १७१२ ई०
से पूर्व। (ग) रसगंगाधर की टीका-१७०० ई० पश्चात् । (घ) काव्यप्रदीपोद्योत--१७०० ई० के आस पास । (ङ) आशौचनिर्णय-१७२२ ई० से पूर्वं । (च) लधुमंजूषा-- यह ग्रन्थ वैयाकरणसिद्धांतमंजूषा तथा बृहच्छब्देन्दुशेखर के बाद की
रचना है। इसका समय लगभग १७००-१७०८ है । (छ) लघुशब्देन्दुशेखर-यह ग्रन्थ बृहच्छब्देन्दुशेखर के बाद लिखा गया। इसमें नागेश
कृत महाभाष्यप्रदीपोद्द्योतटीका (१७००-१७०८) का निर्देश मिलता है। अतः लघुशब्देन्दुशेखर को १७०० ई० के बाद का मानना होगा।
१. द्र०-स्टडीज इन इण्डियन लिटरेरी हिस्टरी, भा० ३, पृ० २१८-१९ ।
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