Book Title: Viroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Kamini Jain
Publisher: Bhagwan Rushabhdev Granthmala
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वीरोदय महाकाव्य और भ. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन
परिच्छेद-2
प्राकृत काव्यों में वर्णित चरित - परम्परा
प्राकृत - साहित्य का प्रादुर्भाव धार्मिक क्रान्ति से हुआ है। अतः आगम सम्बन्धी मान्यताओं का प्राप्त होना और तत्सम्बन्धी साहित्य का प्रचुर रूप में लिखा जाना स्वाभाविक है । इस साहित्य में लौकिक - साहित्य के बीज - सूत्र वर्तमान है, जिनके आधार पर प्रबन्धात्मक काव्य एवं कथा - साहित्य के विकास की परम्परा स्थापित की जा सकती है।
बीज - सूत्रों के आधार पर चरित - काव्यों का प्रणयन कवियों ने किया है। संस्कृत के चरित - काव्यों का मूल स्रोत जिसप्रकार वेद हैं उसी प्रकार प्राकृत के चरित - काव्यों का मूल स्रोत आगम - साहित्य है । वस्तुतः चरित - काव्य प्रबन्ध काव्य की ही एक रूप-योजना है जहाँ पात्र पौराणिक - ऐतिहासिक हैं और वे कालक्रम के तिथिगत एवं तथ्यगत व्योरों से भी पुष्ट हैं।
साहित्य-विधाओं के विकास पर दृष्टिपात करने से ज्ञात होता है कि कथा -- वर्णन एवं आचार - विषयक मान्यताओं के अनन्तर ही चरित - काव्य का सृजन आरम्भ हुआ है । चरित - काव्य का मूल, आगम और पुराणों में है । प्राकृत चरितों की कथावस्तु राम, कृष्ण, तीर्थंकर या अन्य महापुरूषों के जीवन - तथ्यों को लेकर निबद्ध की गयी है । 'तिलोयपण्णत्ती' में चरित - काव्यों के प्रचुर उपकरण वर्तमान हैं। कल्पसूत्र एवं जिनभद्र - क्षमाश्रमण के विशेषावश्यक - भाष्य में चरित काव्यों के अर्ध-विकसित रूप उपलब्ध
हैं ।
विमलसूरि का पउमचरियं वर्द्धमानसूसरि का आदिनाथचरित, सोमप्रभ का सुमतिनाथ चरित, देवसूरि का पद्यप्रभस्वामी चरित, यशोदेव का चन्द्रप्रभचरित, अजितसिंह का श्रेयांसनाथ चरित, नेमिचन्द्र का अनन्तनाथचरित, देवचन्द्र का शान्तिनाथचरित, जिनेश्वर का