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अध्याय
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वीरोदय महाकाव्य का सांस्कृतिक एवं सामाजिक विवेचन
भारतीय संस्कृति मानव के रहन-सहन, आचार-विचार, और शारीरिक-मानसिक आत्मिक शक्तियों के विकास में सहायक होती है। अतः यह दो पक्षों में विभक्त है। पहले पक्ष का सम्बन्ध उन बातों से है जिसका निर्माण वातावरण, संस्कार और सम्पर्क आदि के फलस्वरूप हुआ करता है और दूसरे पक्ष का उन बातों से है, जो मानव अपने पूर्वजों से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में ग्रहण करता है । प्रथम पक्षीय विषयों की नींव मानव के जन्मकाल से ही पड़ जाती है। उन विषयों में प्रमुख हैं प्राकृतिक वातावरण / जीवन की सामान्य रूपरेखा, / पारिवारिक - सामाजिकधार्मिक-राजनैतिक स्थिति । द्वितीय पक्ष में विभिन्न विषयों के विश्वास और मान्यताओं के साथ-साथ अनेक पर्वोत्सव आदि आते हैं, जिनसे जीवन के प्रति समाज के दृष्टिकोण की संकुचितता या व्यापकता का सहज ही परिचय मिल जाता है ।
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संस्कृति मानव-हृदय को पवित्र करने वाले सुसंस्कारों का समूह है । यह राष्ट्र व समाज - विशेषज्ञ की गति-विधियों का परिचय कराती है। इसी के माध्यम से जन-मानस का अध्ययन किया जाता है । यही चिरन्तन भावनाओं, कामनाओं तथा गन्तव्यों की आधार - शिला कही गई है। जिस राष्ट्र की संस्कृति विशद, उदार तथा महती होगी, वही राष्ट्र समुन्नत होगा ।
वीरोदय काव्य में वर्णित भारतीय संस्कृति
महाकवि ज्ञानसागर एक सन्त महापुरुष हैं। उनका साहित्य प्रवृत्ति से निवृत्ति की ओर उन्मुख होता है । यद्यपि उनके साहित्य-सृज