________________
275
वीरोदय महाकाव्य का सांस्कृतिक एवं सामाजिक विवेचन
बारह व्रतों में सर्वप्रथम अणुव्रत आते हैं। अणु का अर्थ है छोटा या स्वल्प । तत्त्वार्थ-सूत्रकार ने देशव्रत को अणुव्रत और सर्वव्रत को महाव्रत कहा है – “देशसर्वतोऽणुमहती।" त. सू. 71 21
गृहस्थ व्रतों का पूर्ण रूप से पालन नहीं कर पाता, इसलिए उस व्रत को एक देश या अल्पांश में पालन करने का विधान किया गया है। व्रतों का एक देश पालने के कारण गृहस्थ को देशव्रती कहते हैं। अणुव्रतों को अणुरूप में पालन करने के कारण अणुव्रती कहा जाता है। वीरोदय में श्रावकों के व्रत
आचार्यश्री ने वीरोदय में श्रावकों के व्रत में प्रद्युम्नचरित का उदाहरण देते हुए लिखा है कि -
हे संसारी प्राणी कुत्ती और चाण्डाल ने मुनिराज से श्रावकों के बारह व्रतों को धारण किया और भली-भाँति उनका पालन कर सद्गति प्राप्त की। प्रद्युम्नवृत्ते गदितं भविन्नः शुनी च चाण्डाल उवाह किन्न । अण्वादिकद्वादशसव्रतानि उपासकोक्तानि शुभानि तानि।। 32 ।।
-वीरो. सर्ग. 171 उपवास
उपवास का अर्थ है उप अर्थात् समीप वास यानी निवास । अपने परिणाम का आत्मसन्मुख रहना ही उपवास है। कुछ लोग मात्र भोजन-पान के त्याग को ही उपवास मानते हैं, जब कि उपवास तो आत्मस्वरूप के समीप ठहरने का नाम है। नास्ति से पँचेन्द्रियों के विषय, कषाय और आहार के त्याग को उपवास कहा है, शेष तो सब लंघन है।
कषाय-विषयाहारो त्यागो यत्र विधीयते। उपवासः स विज्ञेयः शेषं लंघनकं विदुः।।
निष्कर्ष यही है कि कषाय, विषय और आहार के त्याग पूर्वक आत्मस्वरूप के समीप ठहरना ज्ञान-ध्यान में लीन रहना ही वास्तविक उपवास है।