Book Title: Viroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Kamini Jain
Publisher: Bhagwan Rushabhdev Granthmala

Previous | Next

Page 362
________________ परिशिष्ट 333 परिशिष्ट शब्द एवं लोकोक्ति संकलन महाकवि पं. भूरामल जी शास्त्री ने उर्दू, फारसी, हिन्दी, अंग्रेजी आदि भाषाओं के अनेक प्रचलित / अप्रचलित देशज शब्दों का तथा लोकाक्तियों - मुहावरों का प्रयोग अपनी रचनाओं में बहुतायत से किया है कतिपय इतिहास प्रसिद्ध पुरूषों, विख्यात ग्रन्थों एवं प्राचीन आचार्यों के नामों का भी उल्लेख है । वीरोदय महाकाव्य गत ऐसे कतिपय शब्दों एवं कहावतों का संकलन इस परिशिष्ट में पृथक् से किया जा रहा है। सही / बटे में सर्ग / पद्य का संकेत है। मेवा / मनाक् - 1 / 1, अवीर / मीर / अमीर / नेक - 1 / 5, प्रतिवाद लोपी- 14/52, व्यलोपी - 21 / 13, विघ्नलोपी - 1/6, नौका / मौका18/30, गलालंकरणाय - 1 / 10, फिरंगी - 17 / 28, लेखात् - 1 / 29, सर्वः/खर्वः/वर्वः/नर्वः - 1 / 33, दुरितैकलोपी - 18 / 40, वाढक्षणे - 8 /56, निष्ठा - 19 / 4, निरतैव / त्रिकाल - 1 / 12, खलशीलनेन - 1 / 17, आखो:1/19, गल्लकफुल्लका - 9 / 26, लोपी - 11/29, 12/18, खलता प्रवर्धते- 9/11, गुणरूपचर्चा द्वारा - 5 / 19, भनाग् वदामः - 5/7, निगले- 1/35, 2 / 48, कठिना समस्या - 2 / 31, गले- 3/28, विषादायैव - 10/3, लुठन्ति तपादिव - 2 / 31, स्वीयशरीरहत्यै - 4 / 15, करकप्रकाशात्- 4/15, श्रीगेन्दुकेलौ- 9 / 38, कलहमिते- 9/43, वरीवर्त्ति/सरीसर्त्ति / मरीमर्त्ति / नरो नरीनर्त्ति - 9 / 35, अधीरः - 12/22, असहयोगो - 11/40, सत्यागृह / वहिष्कारः - 11 / 42, मतल्लं मोहमल्लं12 / 45, इति प्रपंच: - 12 / 38 स्वीकुरूतेस्म सेवाम्- 13 / 8, बेरदलं / वाम्बूलं / मान्दारम् - 19/11, सूर्यस्य घर्मतः - 19 / 43, पापं लग्नस्य- 22/24, हिन्दुस्थानस्य - 22 /11, कलहकारितया सदापि22/20, छत्रायते - 2 / 3, हारायते - 1 / 24, किरीटायते - 2 /471

Loading...

Page Navigation
1 ... 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376