Book Title: Viroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Kamini Jain
Publisher: Bhagwan Rushabhdev Granthmala

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Page 352
________________ 323 भगवान महावीर के सिद्धान्तों का समीक्षात्मक अध्ययन आर्यभट्ट आदि सभी महापुरूष, इस्लामी सूफी संत, 'अहिंसा परमो धर्मः' के उपदेशक महात्मा बुद्ध, भ. महावीर, महात्मा गांधी सभी शुद्ध शाकाहारी थे। सभी ने मांसाहार का विरोध किया है, क्योंकि शुद्ध बुद्धि व आध यात्मिकता मांसाहार से सम्भव नहीं है। अतः शाकाहार के महत्त्व को समझ कर हम पूर्णतः शुद्ध शाकाहारी बनें और परिवार को भी शाकाहारी बनायें। शुद्ध सात्विक सदाचारी जीवन के बिना सुख-शान्ति प्राप्त होना संभव नहीं है। अतः जो आत्मिक शान्ति तथा आत्मानुभूति पाना चाहते हैं, उनका जीवन सात्विक और सदाचारी होना चाहिए, क्योंकि जीवन में सुख-शान्ति शाकाहार से ही पायी जा सकती है। पुरूषार्थ-चतुष्टय ___ भारतीय धर्मों में चार पुरूषार्थ माने गये हैं, 1. धर्म, 2. अर्थ, 3. काम और 4. मोक्ष । जैनधर्म में भी ये चारों मान्य हैं। मोक्ष को सर्वश्रेष्ठ और अन्तिम रूप से प्राप्य माना है। गृहस्थ जीवन में आदि के तीन पुरूषार्थों को संतुलित रूप में अपनाया जाये तो मोक्ष पुरूषार्थ भी सध सकता है। धर्मार्थकाममोक्षाणां त्रिवर्गो यदि सेव्यते। अनर्गलमतः सौरव्यमपवर्गनुक्रमात् ।। 10 ।। ___-पुरू.सि.उ.। आ. अमृतचन्द्र ने तो अपने ग्रन्थ का नाम ही पुरूषार्थसिद्धयुपाय रखा है। उन्होंने लिखा है कि जब यह जीव समस्त विवों को उर्तीर्ण करके अचल चैतन्य को प्राप्त होता है तभी वह सम्यक् पुरूषार्थसिद्धि को प्राप्त कर कृतकृत्य होता है। विपरीत अभिनिवेश को दूर कर आत्मतत्त्व को सम्यक् प्रकार निश्चय कर उस पर अविचल रहना ही पुरूषार्थ-सिद्धि का उपाय है। सर्वविवर्तात्तीर्ण सदा स चैतन्यमचलमाप्नोति। भवति तदा कृतकृत्यः सम्यकपुरूषार्थसिद्धिमापन्नः ।। 11 ।। -पुरू.सि.उ.।

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