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भगवान महावीर के सिद्धान्तों का समीक्षात्मक अध्ययन
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परिच्छेद - 3 सदाचार एवं शाकाहार जीवन शैली
भारतीय दर्शन ने आन्तरिक शुद्धि पर बहुत जोर दिया है और आहार को आन्तरिक शुद्धि का आधार माना है। भारत में ही अहिंसा की ज्योति जली और भ. बुद्ध एवं भ. महावीर के शिष्यों ने उस ज्योति को सारे संसार में फैलाया। भारतीय जनता जिस कृष्ण के पीछे पागल हुई वह गोपाल कृष्ण ही है, गायों के पास बांसुरी बजाने वाला। योग दर्शन के प्रवर्तक पतंजलि ऋषि ने अहिंसा को अष्टांग योग का अंग माना है। उन्होंने कृत, कारित और अनुमोदना तीन प्रकार की प्रमुख हिंसा मानी है। कृत स्वयं अपने द्वारा, कारित जिसे दूसरों द्वारा करवाया गया हो, और अनुमोदित वह जिसे स्वयं तो नहीं किया हो, पर उसमें मौन अनुमोदन हो।'
____ शाकाहार एक अत्यन्त सुविकसित मानवीय जीवन-पद्धति है, जिसमें प्रतिक्षण विकास का स्वर मुखरित होता रहता है। यह वह पवित्र धरातल है, जिस पर साधु सन्त महात्मा और सत्पुरूषों का जन्म होता है। जिनके द्वारा शान्ति, सदाचार, परोपकार एवं भाईचारे की कोमल निःस्वार्थ भावनाओं का सन्देश जन-जन तक प्रवाहित होता रहता है। इसमें अन्दर और बाहर दोनों ही प्रकार से सहज वात्सल्य का झरना झरता रहता है। शाकाहार में साग-सब्जी एवं फलों के अलावा गेहूँ, जौ, चना, ज्वार, मक्का दालें, मसाले ये सब आते हैं। अहिंसा प्रणाली पर आधारित एक परिपूर्ण भोजन व्यवस्था का नाम शाकाहार है। आज हमारा देश और संस्कृति शाकाहार की गुणवत्ता का त्याग कर मांसाहार को स्थापित करने में सचेष्ट है। यह कदम हमारी सुख, शान्ति और समृद्धि के लिए आत्मघाती है। मांसाहार हिंसा का विकराल और दिल दहलाने वाला वीभत्स कुआँ है, जिसमें मृत्यु रूपी राक्षस अपनी लपलपाती जिव्हा से हमारे देश के पशुधन को निगल रहा है।