Book Title: Viroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Kamini Jain
Publisher: Bhagwan Rushabhdev Granthmala
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उपसंहार
20वीं शताब्दी के महान कवियों में महाकवि बाल-ब्रह्मचारी पण्डित भूरामल शास्त्री का नाम विशेष उल्लेखनीय है। साहित्यिक व दार्शनिक क्षेत्र में विपुल साहित्य सृजन कर आपने संस्कृत वाङ्मय के मान्य कवियों में अद्वितीय स्थान प्राप्त किया है। पं. भूरामल शास्त्री वर्तमान में जैन निर्ग्रन्थ आचार्य ज्ञानसागर जी के नाम से विख्यात है। संस्कृत कवि कालिदास, माघ, श्रीहर्ष, भारवि आदि के समान ही जब हम कवि आचार्य ज्ञानसागर को तर्क की कसौटी पर परखते हैं, तो हमें उनमें तार्किक चिन्तन के साथ-साथ परम तपस्वी, धार्मिक निष्ठा एवं समन्वयवादी दृष्टिकोण के भी दर्शन होते हैं। महाकवि ने जयोदय, वीरोदय, सुदर्शनोदय, भद्रोदय जैसे महाकाव्यों की तथा चम्पूकाव्य के रूप में दयोदय की रचना कर संस्कृत साहित्य की समृद्धि में अभूतपूर्व योगदान किया है। इनके द्वारा रचित संस्कृत और हिन्दी भाषा में निबद्ध लगभग 30 कृतियाँ उपलब्ध हैं। जिनमें कुछ रचनायें मौलिक हैं, कुछ ग्रन्थों पर टीकाएँ हैं और कुछ अनुदित रचनायें भी हैं। प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध में आचार्य ज्ञानसागर द्वारा प्रणीत वीरोदय महाकाव्य और भगवान महावीर के जीवन चरित का समीक्षात्मक विश्लेषण किया गया है।
___ वीरोदय महाकाव्य की कथा का स्रोत महाकवि जिनसेनकृत महापुराण का तृतीय भाग उत्तरपुराण है। इसी को अपनी लेखनी का आधार बनाकर महाकवि श्री ज्ञानसागर ने वीरोदय महाकाव्य का सृजन किया है। प्रस्तुत महाकाव्य में 22 सर्ग, 988 श्लोक हैं। सम्पूर्ण महाकाव्य में भगवान् महावीर के त्याग एवं तपस्या-पूर्ण जीवन की झांकी प्रस्तुत की गई है। प्रस्तुत महाकाव्य भगवान् महावीर के समग्र जीवन-दर्शन पर आधारित है। कवि ने काव्य के माध्यम से ब्रह्मचर्य व्रत के प्रति पूर्ण निष्ठा एवं चारित्रिक दृढ़ता की शिक्षा दी है। काव्यशास्त्रीय दृष्टि से यह उच्चकोटि का महाकाव्य है।