Book Title: Viroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Kamini Jain
Publisher: Bhagwan Rushabhdev Granthmala
View full book text
________________
• वीरोदय महाकाव्य और भ. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन
जानता और देखता है, वही सम्यकचारित्र, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्दर्शन है। उक्त तीनों यदि पराश्रित होंगे तो उनसे बन्ध होगा और यदि स्वाश्रित होंगे तो मोक्ष होगा। श्री देवसेनाचार्य ने तत्त्वसार में कहा है ससहावं वेदंतो विच्चलचित्तो विमुक्कपरभावो । सो जीवो णायव्वो दंसण णाणं चरितं च ।।
306
अपने स्वभाव का अनुभव करता हुआ, जो जीव परभाव को छोड़कर निश्चल चित्त होता है, वही जीव सम्यग्दर्शन है, सम्यग्ज्ञान है और सम्यग्चारित्र है, ऐसा जानना चाहिए ।
रत्नत्रयी आत्मध्यानी है
--
जो योगी ध्यानस्थ मुनि जिनेन्द्रदेव के मतानुसार रत्नत्रय की आराधना करता है और पर पदार्थ का त्याग करता है । वही आत्मध्यानी है, इसमें सन्देह नहीं है। ज्ञानी के दर्शन, ज्ञान, चारित्र व्यवहार से है । आ. कुन्दकुन्द ने समयसार में कहा है ज्ञान के चारित्र, दर्शन, ज्ञान- यह तीन भाव व्यवहार से कहे जाते हैं, निश्चय से ज्ञान भी नहीं है और दर्शन भी नहीं है, ज्ञानी तो एक शुद्ध ज्ञायक ही हैं
व्यवहारेणुवदिस्सदि णाणिस्स चरित दंसणं णाणं । ण-वि णाणं-ण चरितं ण दंसणं जाणनो सुद्धो ।।
- समयसार गा. 7 1
-
-
सम्यग्दर्शन
आचार्य उमास्वामी ने तत्त्वार्थसूत्र में लिखा है कि अपने अपने स्वरूप के अनुसार पदार्थों का जो श्रद्धान होता है, वह सम्यग्दर्शन है। जो पदार्थ जिस रूप से अवस्थित है, उसका उस रूप होना यही यहाँ 'तत्त्व' - शब्द का अर्थ है। जो निश्चय किया जाता है वह अर्थ है 'अर्थते निश्चीयते इत्यर्थः । यद्यपि "दर्शन”- शब्द का सामान्य अर्थ आलोक है, तथापि यहाँ आलोक अर्थ न लेकर श्रद्धान को ग्रहण किया है। धातुओं के अनेक अर्थ होते हैं। यहाँ "दृश्" - धातु का अर्थ श्रद्धान गृहण किया गया है।
-