Book Title: Viroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Kamini Jain
Publisher: Bhagwan Rushabhdev Granthmala
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वीरोदय महाकाव्य और भ. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन नेमिचन्द्र सूरि ने लिखा है कि रत्नत्रय (सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यग्चारित्र) आत्मा के परिणाम है, ये अन्य द्रव्य में नहीं होते। इसलिए इन तीनों से युक्त आत्मा ही मोक्ष का कारण है -
रयणत्तयं ण वट्टइ अप्पाणं मुइत्तु अण्णदवियम्हि । तम्हा तत्तियमइउ होदि मोक्खस्स कारणं आदा।। 40 ।।
-द्रव्यसंग्रह इस प्रकार रत्नत्रय को पाकर ही यह जीव श्रेष्ठ गति को प्राप्त करता है। वीरोदय में सम्यग्चारित्र
सदाचरण को आचार्यश्री ज्ञानसागर ने निम्न बिन्दुओं के द्वारा स्पष्ट किया है। यथा - वृद्धानुपेयादनुवृत्तबुद्धयाऽनुजान् समं स्वेन वहेत् त्रिशुद्धया। कमप्युपेयान्न कदाचनान्यं मनुष्यतामेवमियाद्वदान्यः।। 8 ।।
-वीरो.सर्ग. 171 बुद्धिमानों को चाहिए कि अपने से बड़े वृद्ध जनों के साथ अनुकूल आचरण करें, अपने से छोटों को तन, मन, धन से सहायता पहुँचायें, किसी भी मनुष्य को दूसरा न समझें। सभी को अपना कुटुम्ब मानकर उनके साथ उत्तम व्यवहार करें। संयमाचरण के लिए मन व इन्द्रियों पर विजय आवश्यक है
अभिवांछसि चेदात्मन् सत्कर्तुं संयमद्रुमम् । नैराश्यनिगडेनैतन्मनोमर्कटमाधर ।। 43।।
-वीरो.सर्ग. 111 हे आत्मन्! यदि तुम संयम-रूप वृक्ष की सुरक्षा करना चाहते हो, तो अपने इस मन-रूप मर्कट (बन्दर) को निराशा-रूपी सांकल से अच्छी तरह जकड़ कर बांधो।