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वीरोदय महाकाव्य का सांस्कृतिक एवं सामाजिक विवेचन
गुणगान किया है "अकेली जीवदया एक ओर है और बाकी की सब क्रियायें दूसरी ओर हैं। यानी सब क्रियाओं से जीवदया श्रेष्ठ है । अन्य सब क्रियाओं का फल खेती की तरह है और जीवदया का फल चिन्तामणि रत्न की तरह है ।"
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एका जीवदयैकत्र परत्र सकला क्रियाः । परं फलं तु पूर्वत्र कृषेश्चिन्तामणेरिव ।। 361 || वीरोदय में दया
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जो दूसरों को मारता है, वह स्वयं दूसरों के द्वारा मारा जाता है और जो दूसरों की रक्षा करता है, वह जगत में पूज्य होता है। इसलिये दूसरों के साथ दया का ही व्यवहार करना चाहिये | 26
सहिष्णुता
पारिवारिक दायित्वों के निर्वाह के लिए सहिष्णुता अत्यावश्यक है । परिवार में रहकर व्यक्ति सहिष्णु न बने और छोटी-सी -छोटी बात के लिए उतावला हो जाय तो परिवार में सुख-शान्ति नहीं रह सकती । सहिष्णु व्यक्ति शान्तभाव से परिवार के अन्य सदस्यों की बातों और व्यवहारों को सहन कर लेता है, फलतः परिवार में सदा शान्ति और सुख-सम्पदा बनी रहती है। जो परिवार में सभी प्रकार की समृद्धि का इच्छुक है तथा समृद्धि द्वारा लोक व्यवहार को सफल रूप में संचालित करना चाहता है, उसे सहिष्णु होना आवश्यक है। विकारी मन, शरीर और इन्द्रियों के वश होकर जो काम करता है, उसकी सहिष्णुता की शक्ति घटती है । अभ्युदय और निःश्रेयस की प्राप्ति सहनशीलता द्वारा ही सम्भव है। जो स्वयं अपनी बुराईयों का अवलोकन कर उन्हें दूर करता है, वह समाज में शान्ति स्थापन का भी प्रयास करता है । सहिष्णुता का अर्थ कृत्रिम भावुकता नहीं और न अन्याय और अत्याचारों को प्रश्रय देना ही है, किन्तु अपनी आत्म-शक्ति का इतना विकास करना है, जिससे व्यक्ति, समाज और परिवार निष्पक्ष जीवन व्यतीत कर सके । पूर्वाग्रह के कारण असहिष्णुता उत्पन्न होती है । जिससे सत्य का निर्णय नहीं होता। जो शान्त चित्त है, जिसकी भावनायें