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वीरोदय महाकाव्य का सांस्कृतिक एवं सामाजिक विवेचन वीरोदय में नीतिगत व्यवस्थाएँ राजनैतिक व्यवस्था - किसी राज्य के संचालन की रीति को ही राजनीति कहते हैं। राजनीति प्रत्येक शासक की अलग-अलग होती है। किसी राज्य की नीति सफल होती है और किसी की असफल। सफल राजनीति वह है, जिसके अनुसार राजा प्रजा पर नियन्त्रण भी कर सके
और उसे वात्सल्य भी दे सके। इस प्रकार की नीति में विद्रोह की सम्भावना नहीं रहती।
आचार्य ज्ञानसागर को इस बात का पूरा-पूरा ज्ञान है कि राजा का प्रजा के प्रति और प्रजा का राजा के प्रति क्या-क्या कर्त्तव्य होने चाहिए ? एक मुनि द्वारा राजकुमार जयकुमार को दिये गये उपदेश में कवि की इस राजनैतिक विचारधारा का ज्ञान हो जाता है। उसके अनुसार राजा को अपने सेवकों से उचित व्यवहार करना चाहिए। दान, सम्मान आदि से शत्रुओं को भी अपने वश में कर लेना चाहिए। जयोदय महाकाव्य में मुनि द्वारा जयकुमार को इस प्रकार उपदेश दिया गया है - दानमानविनयैर्यथोचितं तोषयन्निह सधर्मि-संहतिम् । कृत्यकृतिमतिनोऽनुकूलयन् संलभेत गृहिधर्मतो जयम् ।। 72 ||
___ -जयो.सर्ग.2। राजा यथायोग्य रोति से दान-सम्मान और विनय द्वारा न केवल समानधर्मी लोगों को सन्तुष्ट रखे बल्कि विधर्मी लोगों को भी अपने अनुकूल बनाये रखे तथा अपने गृहस्थ धर्म पर विजय प्राप्त करे।
___ जो राजा प्रजा के हित का ध्यान रखता है, योग्य व्यक्ति को ही कार्य सौंपता है, और सोच-विचार कर ही कार्य करता है, उसके ही राज्य में प्रजा सुखी होती है एवं उसके ही प्रति प्रजा में भक्ति भावना उदित होती है। राजा सिद्धार्थ, चक्रवर्ती भरत एवं वृषभदत्त ऐसे ही प्रजावत्सल शासक हैं। सम्राट भरत तो राजनीति में अत्यधिक निपुण हैं। अधीनस्थ राजाओं से उनके ऐसे पारिवारिक सम्बन्ध है कि वे उनके विरूद्ध विद्रोह करना तो दूर उसकी सोच भी नहीं सकते।