Book Title: Viroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Kamini Jain
Publisher: Bhagwan Rushabhdev Granthmala
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वीरोदय महाकाव्य और भ. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन
रवेरिवात्मैककवेरूदार - भूतेऽनुभूते स मुदोऽधिकारः । उद्यान–सम्पालककुक्कुटेनाऽपराजितः कोक इवागमेन । । 34 । ।
-समुदत्त च.सर्ग.6। बगीचे के रक्षक माली ने जैसे ही राजा को सूचना दी कि "आत्मध्
यानी मुनि आपके बगीचे में बिराजे हैं" यह सुनकर अपराजित राजा उसी प्रकार प्रसन्न हुआ जैसे मुर्गे की आवाज से सूर्य का उदय जानकर चकवा पक्षी प्रसन्न होता है।
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वह त्यागोन्मुख भोग पर ही विश्वास करते हैं । हिन्दू-संस्कृति के अनुसार वे भी यह मानते हैं कि पुत्र के राज्याभिषेक के पश्चात् पुरूष को तपस्या हेतु तपोवन में चला जाना चाहिए । आचार्य ज्ञानसागर अतिथि-वत्सल भी हैं। सोमदत्त का पालित पिता गोविन्द ग्वाला गुणपाल के विषय में बिना जाने ही उसका अतिथि सत्कार करता है और सोमदत्त को भी उसकी सेवा में नियुक्त कर देता है । कवि ने जल- -क्रीड़ा, पतंग क्रीड़ा एवं शतरंज - क्रीड़ा के सन्दर्भ में भी अपने ज्ञान का परिचय दिया है जो उनकी मनोरंजन - प्रियता का परिचायक है । कवि के अनुसार विवाह के समय कन्या को सुन्दर वस्त्राभूषणों से सजाना चाहिए, विवाहादि के शुभ अवसरों पर मंगल-गीतों का प्रबन्ध होना चाहिए एवं दान भी देना चाहिए ।
भारतीय त्यौहारों पर भी श्रीज्ञानसागर की आस्था है । इसलिये उन्होंने अपने काव्यों में झूला झूलने और वसन्तोत्सव में वनविहार करने का उल्लेख किया है । कवि संगीत - प्रेमी भी हैं । भारतीय परम्परानुसार उनका विश्वास है कि राग एवं ताल में निबद्ध भजनों के गायन से देवता अवश्य ही भक्त की पुकार सुन लेते हैं। अतः जहाँ कहीं भी उनके मन में भक्ति-भाव जागृत हुआ है, वहाँ उन्होंने संगीतमय भजन अपने इष्ट देव को सुनाये हैं। महाकवि के मतानुसार संगीत हमारे मनोभावों एवं अन्तर्द्वन्द के प्रस्तुतीकरण में पर्याप्त सहायक होता है ।
इस प्रकार आचार्यश्री ने नीतिगत व्यवस्था के अन्तर्गत राजनैतिक/