Book Title: Viroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Kamini Jain
Publisher: Bhagwan Rushabhdev Granthmala
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वीरोदय महाकाव्य का सांस्कृतिक एवं सामाजिक विवेचन दण्ड/ आर्थिक एवं सांस्कृतिक व्यवस्था का बड़े ही सुन्दर ढंग से चित्रण किया है, जो कवि की कुशलता का परिचायक है। समाज में अनुशासन
मानवता के भव्य-भवन का निर्माण अनुशासन द्वारा ही संभव है। वस्तुतः जहाँ अनुशासन है, वहीं अहिंसा है और जहाँ अनुशासन-हीनता है वहाँ हिंसा है। पारवारिक और सामाजिक जीवन का विनाश हिंसा द्वारा होता है। यदि धर्म से मनुष्य के हृदय की क्रूरता दूर हो जाये और अहिंसा से उसका अन्तःकरण निर्मल हो जाये तो जीवन में सहिष्णुता की साधना सरल हो जाती है।
वास्तव में अनुशासित जीवन ही समाज के लिए उपयोगी है। जिस समाज में अनुशासन का अभाव रहता है, वह समाज कभी भी विकसित नहीं हो पाता। अनुशासित परिवार ही समाज को गतिशील बनाता, प्रोत्साहित करता और आदर्श की प्रतिष्ठा करता है। संघर्षों का मूल कारण उच्छृखलता या उद्दण्डता है। जब तक जीवन में उद्दण्डता आदि दुर्गुण रहेंगे, तब तक सुगठित समाज का निर्माण सम्भव नहीं है। समाज और परिवार की प्रमुख समस्याओं का समाधान भी अनुशासन द्वारा ही सम्भव है। आज शासन और शासित सभी का व्यवहार उन्मुक्त या उच्खलित हो रहा है। अतः अतिचारी और अनियन्त्रित प्रवृत्तियों को अनुशासित करना आज आवश्यक है।
__अनुशासन का सामान्य अर्थ है कतिपय नियमों सिद्धान्तों आदि का परिपालन करना, किसी भी स्थिति में उनका उल्लंघन न करना। जो व्यक्ति, परिवार और समाज के द्वारा पूर्णतः आचरित होता है, अनुशासन कहा जाता है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सुव्यवस्था की अनिवार्य आवश्यकता है। इसके बिना मानव-समाज विघटित हो जायेगा और उसकी कोई भी व्यवस्था नहीं बन सकेगी। जो व्यक्ति स्वेच्छा से अनुशासन का निर्वाह करता है, वह परिवार और समाज के लिए एक आदर्श उपस्थित करता है। जीवन के विशाल भवन की नींव अनुशासन पर ही अवलम्बित होती है।