Book Title: Viroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Kamini Jain
Publisher: Bhagwan Rushabhdev Granthmala
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वीरोदय महाकाव्य का सांस्कृतिक एवं सामाजिक विवेचन
269 सांस्कृतिक अध्ययन" तथा जायसी के “पदमावत' में विशेष प्रकाश डाला है।
नेत एक प्रकार का महीन रेशमी वस्त्र था। यह कई रंगों का होता था। थानों में से काँटकर इससे तरह-तरह के वस्त्र बनाये जाते थे। पद्मावत के उल्लेखों से ज्ञात होता है कि सोलहवीं शती तक नेत्र का प्रचार था। जायसी ने तीन बार नेत्र अथवा नेत का उल्लेख किया है। रतनसेन के शयनगार में अगर चन्दन पोतकर नेत के परदे लगाये जाते थे। ओपरि जूडि तहाँ सोवनारा, अगर पोति सुख नेत ओहारा। चित्रपटी - डॉ. अग्रवाल ने लिखा है कि चित्रपटी या चित्रपट वे जामदानी वस्त्र होते हैं, जिनमें बुनावट में ही फूल-पत्तियाँ डाल दी जाती थीं। बंगाल इन वस्त्रों के लिए सदा प्रसिद्ध रहा है। दुकूल – सोमदेव ने दुकूल का कई बार उल्लेख किया है। शक्र ने महावीर को जो हंस दुकूल का जोड़ा पहनाया था वह इतना पतला था कि हवा का मामूली झटका उसे उड़ा ले जा सकता था। उस बुनावट की तारीफ कारीगर भी करते थे। 2. पोशाकें या पहनने के वस्त्र - पोशाक या पहनने के वस्त्रों में कंचुक, वारवाण तथा चोलक का उल्लेख है। कंचुक - एक प्रकार का कोट था। खेतों में जाती हुई कृषक वधुएँ कंचुक पहनती थीं। चोलक - चोलक भी एक प्रकार का कोट था, जो कंचुक या अन्य सब प्रकार के वस्त्रों के ऊपर पहना जाता था। यह एक संभ्रान्त और आदर सूचक वस्त्र समझा जाता था। उत्तर-पश्चिम भारत में सर्वत्र नौशे के लिए इस वेश का रिवाज अभी भी है, जिसे चोला कहते हैं। चोला ढीला-ढाला गुल्फों तक लम्बा खुले गले का पहनावा है, जो सब वस्त्रों के ऊपर पहना जाता है। कौपीन - कौपीन एक छोटा खंडवस्त्र था, जिसका उपयोग साधु पहनने में करते थे।