Book Title: Viroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Kamini Jain
Publisher: Bhagwan Rushabhdev Granthmala
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वीरोदय महाकाव्य और भ. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन
जगह-जगह स्नान, बलिकर्म, कौतुक, मंगल, प्रायश्चित का उल्लेख है। जब लोग किसी मन्दिर, साधु-सन्यासी, राजा या महान पुरूषों के दर्शनों के लिए जाते थे, तो स्नान करके, गृह-देवताओं की बलि देते, तिलक आदि लगाते, सरसों, दही, अक्षत और दूर्वा ग्रहण करते और प्रायश्चित (पायच्छित, अथवा पादच्छुत – नेत्र रोग दूर करने के लिए पैरों में तेल लगाना) करते थे। वीरोदय में शुभाशुभ शकुन
रानी प्रियकारिणी द्वारा रात्रि के अन्तिम प्रहर में सोलह स्वप्नों की सुन्दर परम्परा देखे जाने पर राजा सिद्धार्थ ने शुभाशुभ शकुनों का प्रतिफल बताते हुए कहा कि – हे प्रफुल्लित कमलनयने! तीनों लोकों का अद्वितीय तिलक तीर्थकर होने वाला बालक तुम्हारे गर्भ में अवतरित हुआ है- ऐसा संकेत यह स्वप्नावली दे रही है। लोकत्रयैकतिलको बालक उत्फुल्लनलिननयनेऽद्य । उदरे तवावतरितो हींगितमिति सन्तनोतीदम् ।। 40।।
-वीरो.सर्ग.41 वेशभूषा
___ भारतीय साहित्य में वस्त्रों के अनेक उल्लेख मिलते हैं, किन्तु वीरोदय के उल्लेखों की यह विशेषता है कि उनके कई एक वस्त्रों की सही पहचान पहले पहल होती है। इन वस्त्रों को तीन वर्गों में विभक्त किया जा सकता है -
1. सामान्य वस्त्र। 2. पोशाकें या पहनने के वस्त्र।
3. गृहोपयोगी वस्त्र। 1. सामान्य वस्त्र
सामान्य वस्त्रों में नेत, चीन, चिभपटी, पटोल और रल्लिका का उल्लेख एक साथ हुआ है। डॉ. वसुदेव शरण अग्रवाल ने "हर्षचरित एक