Book Title: Viroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Kamini Jain
Publisher: Bhagwan Rushabhdev Granthmala
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वीरोदय महाकाव्य और भ. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन
राजा को प्रजावत्सल एवं राजनिपुण होने के साथ ही साथ, दूरदर्शी भी होना चाहिए। उसे न केवल बाह्य लोगों की अपितु अन्तःपुर के वृत्तान्तों की भी पूर्ण जानकारी होनी चाहिए । राजा को व्यक्ति की पूरी परख होनी चाहिए, अन्यथा अन्तःपुर में होने वाले भ्रष्टाचारों के लिए सुदर्शन जैसे निरपराध प्रजाजन दोषी ठहराये जाते हैं । राजाओं को भी चाहिए कि वह वास्तविक अपराधी को खोजकर न्यायपूर्वक दण्ड की व्यवस्था करे। सुदर्शनोदय महाकाव्य में अपराधी का चित्रण करते हुए कवि ने लिखा है कि सुदर्शन को मारने के लिए हाथ में तलवार लेकर राजा जैसे ही उद्यत हुआ उसके अभिमान का नाश करने वाली आकाश वाणी इस प्रकार प्रकट हुई. -
जितेन्द्रियो महानेषस्वदारेष्वस्ति तोषवान् । राजन्निरीक्ष्यतामित्थं गृहच्छिद्रं परीक्ष्यताम् || 10 ।। -सुदर्शनो. सर्ग.8 ।
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हे राजन् ! सुदर्शन अपनी ही स्त्री में सन्तुष्ट रहने वाला महान जितेन्द्रिय पुरुष है, यह निर्दोष है। अपने ही घर के छिद्र को देखो और यथार्थ रहस्य का निरीक्षण करो ।
राज्य संचालन का प्रमुख अधिकारी राजा होता है । कवि ने न्यायाधीश के रूप में भी राजा को ही स्वीकार किया है। राजा को सलाह देने के लिए एक मंत्र - मण्डल भी होना चाहिए । अर्थ-व्यवस्था चलाने के एक राज- सेठ का पद भी कवि को मान्य है। राज्य की सुरक्षा हेतु कवि को सेनापति पद भी स्वीकार्य है। संदेशों को इधर-उधर भेजने के लिए दूतों की भी अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए । प्रजा को राजा के नियन्त्रण में रहना चाहिए । राजा की ओर से प्रसारित आज्ञा का प्रत्येक को पालन करना चाहिए। कवि ने आज्ञाकारी प्रजाजन के रूप में सोमदत्त को प्रस्तुत किया है, जो राजा की आज्ञा प्राप्त होने पर राजकुमारी से विवाह की विनम्र स्वीकृति देता है। 10
युद्ध के सम्बन्ध में भी कवि की धारणा है कि जब प्रतिपक्षी राजा युद्ध करने पर उतारू हो जाए तो पीठ दिखाने की अपेक्षा युद्ध ही करना