Book Title: Viroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Kamini Jain
Publisher: Bhagwan Rushabhdev Granthmala
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वीरोदय महाकाव्य का सांस्कृतिक एवं सामाजिक विवेचन
चाहिए | योद्धाओं को परस्पर समान शस्त्र एवं वाहन का प्रयोग करना चाहिए । युद्ध- समाप्ति पर मृत व्यक्तियों का अन्तिम संस्कार एवं घायलों का उपचार भी करना चहिए। यथा मिथोऽत्र सम्मेलनकं समर्जन्नस्मै जनो वाजिनमुत्ससर्ज । अहो पुनः प्रत्युपकर्तुमेव मुदा ददौ वारणमेष देवः ।। 65 ।। -जयो.सर्ग.8 ।
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जयोदय महाकाव्य में युद्ध के सम्बन्ध में लिखा है कि जयकुमार के ऊपर किसी ने वाण फेंका तो जयकुमार ने बीच में ही उसका निवारण कर लिया। एक वीर ने दूसरे वीर को जमीन पर गिरा दिया। वह गिरा हुआ मनुष्य एक दम साहस कर उठा और उसने दूसरा पैर पकड़ कर उसे आकाश में उछाल दिया। स्पष्ट है कि कवि ऐसी राजनैतिक व्यवस्था चाहता है, जिसमें प्रजा की खुशहाली एवं अधीनस्थ राजाओं पर मधुर नियन्त्रण रह सके ।
दण्ड व्यवस्था
वीरोदय महाकाव्य में कवि ने एक स्थान पर राजा सिद्धार्थ की दण्ड-व्यवस्था का उल्लेख किया है । राजा सिद्धार्थ के समय दण्ड-व्यवस्था इतनी कठोर थी कि यदि राजा किसी पर क्रोधित हो जाए तो उसको दण्ड से बचाने में कोई समर्थ नहीं था । इसलिए शत्रु आदि स्वयं राजा का आश्रय लेते थे ।
भुजंगतोऽमुष्य न मन्त्रिणोऽपि असेः कदाचिद्यदि सोऽस्तु कोपी । त्रातुं क्षमा इत्यरयोऽनुयान्ति तदंघ्रिचन्चन्नखचन्द्रकान्तिम् ।। 10।। - वीरो.सर्ग.3 ।
है ।
भ. महावीर के उपदेशों में भी (16 / 19) राजा के कर्त्तव्यों में दण्ड - व्यवस्था का उल्लेख है
'नृपः सन् प्रदद्यान्न दुष्टाय दण्डं क्षतिः स्यान्मुनेरेतदेवैम्य मण्डम् ।। 19।।'
राजा होकर भी यदि दुष्टों को दण्ड न दे तो यह उसका अकृत्य