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250 वीरोदय महाकाव्य और भ. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन
लोगों को दुःखी देखकर ऋषभदेव ने दया से द्रवीभूत होकर सेवा-परायण शूद्रों को नाना प्रकार की शिल्प कलायें सिखलाईं, वैश्यों को पशु पालना, खेती करना सिखाया तथा अर्थ-शास्त्र की शिक्षा देकर प्रजा के भरण पोषण का भार सौंपा। क्षत्रियों को नीतिशास्त्र की शिक्षा देकर उन्हें प्रजा के संरक्षण का भार सौंपा। यस्यानुकम्पा हृदि तूदियाय स शिल्पकल्पं वृषलोत्सवाय । निगद्य विड्भ्यः कृषिकर्म चायमिहार्थशास्त्र नृपसंस्तवाय ।। 14 ।।
-वीरो.सर्ग18। ऋषभदेव ने समय के विचार से लोकोपकारी शास्त्रों की रचना कर जगत के कष्टों को दूर किया, उन्हें योग (आवश्यक वस्तुओं को जुटाना) और श्रेय (प्राप्त वस्तुओं का संरक्षण करना) सिखाया। प्रजा की जीविका और सुरक्षा-विधि का विधान करने से वे ऋषभदेव जगत के विधाता, सृष्टा या ब्रह्मा कहलाये। परिवार
परिवार एक आधारभूत सामाजिक समूह है। उसके कार्यों का विस्तृत स्वरूप विभिन्न समाजों में अलग-अलग होता है। फिर भी उनके मूलभूत कार्य सब जगह समान ही होते हैं। यह भावनात्मक घनिष्ठता का वातावरण बनाता है तथा बालक के समुचित पोषण व सामाजिक विकास के लिए आवश्यक पृष्ठभूमि देता है। इस प्रकार सामाजिक गठन में परिवार का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। परिवार सामाजिक जीवन की रीढ़ है तथा एक सार्वभौमिक संस्था है। मनुष्य का समुचित रूपेण जीवन-यापन परिवार में ही सम्भव है। परिवारों का समूह ही समाज है।
समन्वयात्मकता भारतीय संस्कृति की विशेषता है। इसी के कारण यहाँ संयुक्त परिवार की परम्परा है। मनुष्य का जन्म, लालन-पालन, रहन-सहन आदि कार्य परिवार द्वारा ही सम्पन्न होते हैं। परिवार में पति-पत्नी के अतिरिक्त माता-पिता, भाई-बहिन, पुत्र-पुत्री आदि होते हैं। इनमें पारस्परिक सम्बन्ध मधुर होते हैं। व्यक्ति के समाजीकरण की