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वीरोदय महाकाव्य और भ. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन
राजा-रानी सुख-दुख में परस्पर सहयोग किया करते थे। रानी प्रियकारिणी का राजा सिद्धार्थ सम्मान करते थे तथा रानी भी राजा के अनुकूल आचरण करती थी । प्रियकारिणी को गर्भवती जानकर राजा अत्यन्त प्रसन्न होता है, सोलह स्वप्नों का फल बताता है तथा तीर्थकर की माता बनने पर अत्यन्त प्रसन्न होता है ।
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पितृ - सन्तति के रूप में भी राजा सिद्धार्थ एक आदर्श पिता हैं । वीर प्रभु के जन्म पर राजा ने पूरे नगर में जन्मोत्सव मनाया। पुत्र पर उनका अत्यन्त स्नेह भी था । पुत्र की बाल लीलाओं को देखकर वे बहुत हर्षित होते थे । वीर प्रभु पर राजा का स्नेह इतना अधिक था कि उनके द्वारा विवाह - प्रस्ताव को अस्वीकार कर देने पर भी वे उन्हें दिगम्बरी दीक्षा की अनुमति दे देते हैं ।
इस प्रकार वीरोदय महाकाव्य में दाम्पत्य जीवन की सुन्दर झाँकी है । यह वर्तमान में संयुक्त परिवारों के विघटन तथा पारिवारिक सम्बन्धों को सुधारने में प्रेरक है । राजा-रानी का मधुर सुखी दाम्पत्य-जीवन दर्शाता है कि यदि परिवार में सामंजस्य स्थापित करना है, तो दोनों को एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान और एक दूसरे के अनुकूल आचरण करना चाहिए तभी दाम्पत्य-सम्बन्धों में मधुरता आ सकती है। परिवार में समन्वय व सामंजस्य की भावना से पारिवारिक सम्बन्ध भी सृदृढ़ व विकसित होते हैं। जैनागमों में मित्र, ज्ञाति - निजक, स्वजन, और परिजनों का उल्लेख भी मिलता है । जैसे-जैसे पिता वयोवृद्ध होते थे, परिवार की देख-रेख का बोझ ज्येष्ठ पुत्र पर पड़ता था । लोग अपने पुत्रों को घर का भार सौप कर दीक्षा ले लेते थे । जन्म, विवाह, मरण तथा विविध उत्सवों पर स्वजन-संबंधियों को निमंत्रित किया जाता था । महावीर के जन्म के समय उनके माता-पिता ने अनेक मित्रों, सम्बन्धियों, स्वजनों और अनुयायियों को आमन्त्रित कर खूब आनन्द मनाया था। यथा जिनचन्द्रमसं प्रपश्य तं जगदाह्लादकरं समुन्नतम् । करकंजयुगं च कुड्मलीभवदिन्द्रस्य बभौ किलाऽच्छलि ।। 15 ।।
- वीरो.सर्ग. 7 ।