Book Title: Viroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Kamini Jain
Publisher: Bhagwan Rushabhdev Granthmala
View full book text
________________
वीरोदय महाकाव्य और भ. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन
कॉटने और बोने आदि में तो पग-पग पर हिंसा है। हाँ, कृषक की यह भावना रहती है कि मेरी खेती में खूब धान्य पैदा हो जिससे कि धान्य खूब सस्ता हो और सब जीव सुखी रहें। बस, उसकी यह भावना ही उसे पाप से बचाती है । यथा
कर्षणे खातसम्पात करणे सिञ्चने पुनः ।
-
लवने वपने चास्ति प्राणिहिंसा पदे पदे । । 2011 धान्यमस्तु यतो विश्व - समितिः स्यादितीयती । कृषकस्य प्रतीति-र्हि सम्भवेद्भद्रदेशिका ।। 21 । । दयो. च. द्वितीय लम्ब ।
मृगसेन ने प्रत्युत्तर में कहा कि ठीक है, खेती करने में भी हिंसा होती है, किन्तु किसान हिंसा करता नहीं है, उसके काम में हिंसा होती है । जिस प्रकार किसी काम-धन्धे में उसका स्वामी भी काम करता है और नौकर भी, परन्तु नफा-नुकसान का भागी तो स्वामी ही होता है।
यथा
86
-
-
यद्यपि
-
-
यथोद्यमं
यथोद्यमं तदुपायकरणे ।
व्याप्रियतेऽनुचरेण लाभालाभकथास्तु च भर्तुः शिरसि सम्पतेत् फलं हि कर्तुः । । 22 ।। दयो. च. द्वितीय लम्ब ।
-
मृगसेन की बात सुनकर घण्टा बोली - "साधु के कहने में तो हम लोगों को भूख के मारे तड़प-तड़प कर ही मर जाना चाहिए। ऐसा धर्म हम लोगों को तो अच्छा नहीं लगता ।" - इस प्रकार ताड़ना देकर मृगसेन को बाहर निकाल दिया । मृगसेन अपने मन में विचारने लगा । "जिस शरीर का लालन-पालन कर मोटा ताजा बनाये रखने के लिये मैंने निरन्तर मन लगाकर अनेक बुरे कर्म किये, वह यह शरीर भी तो एक न एक दिन काल के द्वारा नष्ट किये जाने वाला है। यह पापी पेट शाक - पिण्ड के द्वारा भी भरा जा सकता है, तो फिर इसके लिये जो स्वयं विचारवान है और जो