Book Title: Viroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Kamini Jain
Publisher: Bhagwan Rushabhdev Granthmala
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वीरोदय महाकाव्य और भ. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन
वैशाली का आधिपत्य उनके पुत्र को प्राप्त हुआ ।' सेनापति सिंहभद्र भी तीर्थंकर महावीर की वन्दना के लिए समवशरण में पहुँचा और विनयपूर्वक बोला- "प्रभो ! लिच्छवी - राजकुमार शाक्य मुनि गौतमबुद्ध की प्रशंसा करते हैं, उनके मत को अच्छा बताते हैं, इसका क्या कारण है ?" तीर्थकर महावीर की वाणी की व्याख्या करते हुए इन्द्रभूति गणधर कहने लगे'गौतमबुद्ध के वचन मन को लुभाने वाले इन्द्रायण फल के समान सुन्दर हैं पर तुम तो कर्म - सिद्धान्त के श्रद्धालु हो। तुम्हें अक्रियावादी गौतम के मत से क्या प्रयोजन ? इन्द्रभूति गणधर ने संकल्पी, आरम्भी, उद्योगी और विरोधी हिंसाओं का स्वरूप सेनापति सिंहभद्र को बतलाया ।' सिंहभद्र गणधर के वचनों से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने श्रावक के व्रतों को ग्रहण कर लिया ।
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राजा जितशत्रु पर प्रभाव
वैशाली के निकट स्थित वाणिज्य ग्राम का राजा जितशत्रु भी महावीर की दिव्य-ध्वनि सुनकर बहुत प्रभावित हुआ था तथा उनका भक्त बन गया था ।"
'तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नगरी होत्था। जियसत्तू राया।' चम्पा:- कुणिक, अजातशत्रु, दधिवाहन और करकण्डुक पर प्रभावतीर्थंकर महावीर का समवशरण जब चम्पा में आया तब वहां का राजा कुणिक अजातशत्रु था । महावीर की वन्दना के उपरान्त अजातशत्रु ने पूछा- "प्रभो ! विश्व के लोग लाभ के हेतु ही उद्योग क्यों करते हैं ?" उत्तर में देशना हुई" राजन् ! मनुष्य का उद्योग लाभ के लिए ही होता है । लाभ दो प्रकार के होते हैं- लौकिक और पारलौकिक । आत्मसुख अनुभूति - गम्य है। इसकी तुलना सांसारिक सुखों से नहीं की जा सकती।” अजातशत्रु कुणिक इस देशना को सुनकर प्रभावित हुआ और उसने इन्द्रभूति गौतम के निकट श्रावक के व्रत ग्रहण कर लिये । तेणं कालेणं तेणं समएणं भगवं महावीरे जाव समोसरिए परिसा निग्गमा । कूणिए राया जहा तहा जितसत्तू निग्गच्छ इ-निग्गच्छती जाव पज्जुवासइ ।।