________________
234 वीरोदय महाकाव्य और म. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन ? किसी देवी ने स्वभाव से माता के वक्रिम (कुटिल) दिखने वाले घुघरग्ले बालों का जूड़ा बाँधा, तो किसी चतुर देवी ने माता के चंचल नेत्रों में अत्यन्त काला अंजन लगाया। बबन्ध काचित्कबरी च तस्या निसर्गतो वक्रिमभावदृश्याम् । तस्याः दृशोश्चन्चलयोस्तथाऽन्याऽञ्जनं चकारातिशितं वदान्या।। 12।।
-वीरो.सर्ग.5। उत्साह संयुक्त वे सुदेवियाँ पूजन के योग्य उचित वस्तुओं को देकर माता के साथ ही परम सेव्य जिनेन्द्र देव की पूजा उपासना करने लगीं। किसी देवी ने मृदंग लिया तो किसी दूसरी ने वीणा उठाई, तीसरी ने मंजीरे उठाये और जिनेन्द्रदेव की भक्ति रस से युक्त होकर माता के साथ गाने लगीं। एका मृदंग प्रदधार वीणामन्या सुमञ्जीरमथ प्रवीणा। मातुः स्वरे गातुमभूत् प्रयुक्ता जिनप्रभोर्भक्तिरसेण युक्ता।। 17।।
. -वीरो.सर्ग.5। उन देवियों ने माता से अनेक प्रश्न पूँछना प्रारम्भ किया- हे माता! जीव दुःख को किस प्रकार प्राप्त होता है ? उत्तर- पाप करने से। प्रश्नपाप में बुद्धि क्यों होती है ? उत्तर- अविवेक के प्रताप से। प्रश्नअविवेक क्यों उत्पन्न होता है ? उत्तर- मोह के शाप से अर्थात् मोह कर्म के उदय से जीवों के अविवेक उत्पन्न होता है। इस मोह का विनाश करना जगत-जनों लिए बड़ा कठिन है। दुःख जनोऽम्येति कुतोऽथ पापात्, पापे कुतो धीर-विवेक-तापात् । कुतोऽविवेकः स च मोहशापात्, मोहक्षतिः किं जगतां दुरापा।। 28 ।।
-वीरो.सर्ग.5। इस प्रकार प्रश्नोत्तर काल में ही उन विज्ञ देवियों ने माता को विश्राम का इच्छुक जानकर प्रश्न पूछने से विराम लिया। रात्रि में किसी