Book Title: Viroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Kamini Jain
Publisher: Bhagwan Rushabhdev Granthmala
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वीरोदय का काव्यात्मक मूल्यांकन रानी प्रियकारिणी और देवी संवाद
वीरोदय महाकाव्य में पट्टरानी प्रियकारिणी और श्री ही लक्ष्मी आदि देवियों के संवाद का बड़ा ही रोचक चित्रण किया गया है। रानी प्रियकारिणी के गर्भ में जब वीर प्रभु का अवतरण होता है, तब श्री, ही, धृति, कीर्ति, बुद्धि, लक्ष्मी आदि देवियाँ आती हैं और निष्काम भाव से माता की सेवा करती हैं, जिससे यह प्रतीत होता है कि उन देवियों में चतुराई, ज्ञानार्जन के प्रति जिज्ञासु प्रवृत्ति विनम्रता व्यावहारिक ज्ञान से परिपूर्ण कार्य-कुशलता एवं सेवाभावी गुणों का मंजुल समन्वय है।
देवियों ने कहा-हम सब आपको दुःख पहुँचाने वाला कोई काम नहीं करेगी, किन्तु आपको सुखदायक कार्य ही करेंगी। इस प्रकार विनम्र एवं प्रशंसनीय वचनों से माता को अपना अभिप्राय कहकर और उनके हृदय में अपना स्थान जमा कर वे देवियाँ माता की सेवा में लगकर अपने को सुधन्य मानने लगीं। दत्वा निजीयं हृदयं तु तस्यै लब्ध्वा पदं तद्-हृदि किंच शस्यैः। विनत्युपज्ञैर्वचनैर्जनन्याः सेवासु देव्यो विभवुः सुधन्याः।। 8 ।।
-वीरो.सर्ग.5। प्रगै ददौ दर्पणमादरेण दृष्टुं मुखं मंजुदृशो रयेण। रदेषु कर्तुं मृदु मंजनं च वक्त्रं तथा क्षालयितुं जलं च।। 9।।
___ -वीरो.सर्ग:5। उन देवियों में से किसी ने प्रातःकाल माता के शयन कक्ष से बाहर आते ही उन्हें मुख देखने के लिए आदर के साथ दर्पण दिया, तो किसी ने शीघ्र दांतों की शुद्धि के लिए मंजन दिया और किसी अन्य देवी ने मुख को धोने के लिए जल दिया। कोई देवी माता के शरीर का उबटन करने लगी, तो कोई स्नान को जल लाने को उद्यत हुई। किसी ने स्नान कराया, तो किसी ने माँ के प्रशंसनीय शरीर पर पड़े जल को यह विचार करके कपड़े से पोंछा कि इस पवित्र उत्तम माता के साथ जड़ का प्रसंग क्यों रहे