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वीरोदय का काव्यात्मक मूल्यांकन 9. शार्दूलविक्रीडितम्
वीरोदय महाकाव्य में आचार्यश्री ने इस छन्द का प्रयोग सर्ग के अन्त में छन्द परिवर्तन के लिए और सर्ग के नामोल्लेख करने के लिए किया है। इस महाकाव्य में 38 शार्दूल विक्रीड़ित छन्द है। लक्षण –'सूर्याश्वैर्यदि मः सजौ सततगाः शार्दूलविक्रीडितम्' उदाहरण –श्रीमान् श्रेष्ठिचतुर्भुजः स सुषुवे भूरामलेत्याह्वयं ।
वाणीभूषण-वर्णिनं घृतवरी देवी च यं धीचयम्। श्री वीराभ्युदयेऽमुना विरचिते काव्येऽधुना नामत - स्तस्मिन् प्राक्कथनाभिधोऽयमसकौ सर्गः समाप्तिं गतः ।। 40।।
-वीरो.सर्ग.1। प्रयोग स्थल
1. प्रत्येक सर्ग का अन्तिम श्लोक। 2. द्वितीय सर्ग - 46, 47, 48, 49 |
चतुर्थ सर्ग - 28 | सप्तम सर्ग - 38 | नवम सर्ग - 45 इत्यादि। 10. इन्द्रवजा - इस महाकाव्य में 54 श्लोकों में निबद्ध इन्द्रवज्रा छन्द के निम्न उदाहरण दृष्टव्य है - लक्षण - ‘स्यादिन्द्रवजा यदि तौ जगौ गः' उदाहरण - दीपोऽथ जम्बूपपदः समस्ति स्थित्यासको मध्यगतप्रशस्तिः । लक्ष्म्या त्वनन्योपमयोपविष्ट: द्वीपान्तराणामुपरिप्रतिष्ठः ।। 1।।
-वीरो.सर्ग.21 प्रयोग स्थल द्वितीय सर्ग - 8, 33। तृतीय सर्ग – 1, 2, 22 | चतुर्थ सर्ग - 1, 8, पंचम सर्ग - 191 11. उपेन्द्रवजा लक्षण
'उपेन्द्रवजा जतजास्ततो गौः।