Book Title: Viroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Kamini Jain
Publisher: Bhagwan Rushabhdev Granthmala
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वीरोदय का काव्यात्मक मूल्यांकन
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के मनोरम दृश्यों के चित्रण में कवि की वैदर्भी-शैली के प्रयोग की छटा अवलोकनीय है - नवप्रसंगे परिहृष्टचेता नवां वधूटीमिव कामि एताम् । मुर्हर्मुहुश्चुम्बति चन्चरीको माकन्दजातामथ मंजरी कोः।। 20 ।। आम्रस्य गुंजत्कलिकान्तराले लीकमेतत्सहकारनाम। दृग्वर्त्मकर्मक्षण एव पांथांगिने परासुत्वभृतो वदामः ।। 21 ।।
-वीरो.सर्ग.6। यहाँ पाठक के मन में आह्लाद उत्पन्न करने में मधुर शब्दावली से युक्त प्रवाह पूर्ण वैदर्भी-शैली पूर्णतया सफल हुई है। भगवान महावीर के बाल्यावस्था की सुन्दर चेष्टाओं को कवि ने वैदर्भी-शैली में इस प्रकार प्रस्तुत किया है -
रराज मातुरूत्संगे महोदारविचेष्टितः। क्षीरसागरवेलाया इवांके कौस्तुभो मणिः ।। 8 ।। अगादपि पितुः पार्वे उदयाद्रेरिवांशुमान्। सर्वस्य भूतलस्यायं चित्ताम्भोज विकासयन् ।। 9।।
-वीरो.सर्ग.81 वैदर्भी-शैली के उदाहरणों में माधुर्य गुण की प्रधानता हैं। समास अत्यल्प है। अलंकार स्वभावतः आये हैं। फलस्वरूप सरलता एवं प्रवाह स्पष्टतया दृष्टिगोचर होता है। 2. गौड़ी शैली
इस शैली में ओज-गुण के अभिव्यंजक वर्गों का प्रयोग किया जाता है। दीर्घ समासों का इसमें अधिक उपयोग होता है। यह आडम्बर-पूर्ण होती है। कवि को इसमें पाण्डित्य-प्रदर्शन का भी अवसर मिल जाता है। वीरोदय महाकाव्य में गौड़ी-शैली के उदाहारण दृष्टव्य नहीं हैं। 3. पांचाली शैली
इस शैली में प्रासाद-गुण के अभिव्यंजक वर्गों का प्रयोग किरा