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वीरोदय का काव्यात्मक मूल्यांकन
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परिच्छेद - 3 भाषा शैली
भाषा विचारों की अभिव्यक्ति का सर्वश्रेष्ठ साधन है। भाषा ही शब्द-समूह का नाम है। साहित्यकार के लिये तो भाषा का महत्त्व अन्य व्यक्तियों की अपेक्षा और भी अधिक है। योद्धा के हाथ में तलवार का जो महत्त्व है, काव्यकार के काव्य में वही महत्त्व भाषा का है। अपनी भाषा के माध्यम से ही साहित्यकार अन्य व्यक्तियों के समीप आ पाता है।
जिस कवि में उचित व सार्थक शब्दों के प्रयोग की जितनी अधिक क्षमता होगी, उसकी अभिव्यक्ति उतनी ही उत्कृष्ट होगी। उसकी रचना में उतना ही अधिक समता का भाव रहेगा एवं प्रेषणीयता का गुण भी उसी के अनुसार विद्यमान रहेगा। 'भाषा' के रथ पर बैठकर ही भाव यात्रा करते हैं। 'भावों' के बिना भाषा विधवा है और भाषा के बिना भाव अमूर्त । भाषा एक ऐसा रम्य उद्यान है जिसमें साहित्यरूपी सुमन विकसित होते हैं। यदि भाव कविता के प्राण हैं तो भाषा शरीर । भाषा अभिव्यक्ति का साधन होने से व्यक्ति अन्य बातों में अशक्त होने पर भी सशक्त भाषा-भाषी होकर जीवन के कई क्षेत्रों में विजय पा लेता है। अतः सामाजिक प्राणी होने से प्रत्येक काव्यकार का कर्तव्य हो जाता है कि वह अपने काव्य में ऐसी भाषा का प्रयोग करे, जिससे हृदय की आवाज जनता तक पहुँच सके। यदि पाण्डित्य-प्रदर्शन के साथ कुछ सन्देश देना हो, तो उस परिस्थिति में कवि को सावधानी बरतनी चाहिए।
_ आचार्यश्री ज्ञानसागर ने अपने काव्यों में लौकिक संस्कृत भाषा का प्रयोग किया है। फिर भी उनके महाकाव्य में समाज में समाई हुई उर्दू भाषा के भी कुछ शब्द आ गये हैं। मेवा', अमीर, नेक', शतरंज, बाजी', कुशनप, फिरंगी', इत्यादि।