Book Title: Viroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Kamini Jain
Publisher: Bhagwan Rushabhdev Granthmala
View full book text
________________
204
वीरोदय महांकाव्य और 1. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन
उदाहरण श्लोकन्तु लोकोपकृतौ विधातुं पत्राणि वर्षा कलमं च लातुम् । विशारदाऽम्यारभते विचारिन् भूयो भवन् वार्दल आशुकारी।। 13 ।।
-वीरो.सर्ग.41 जैसे कोई विशारदा (विदुषी) स्त्री लोकोपकार के हेतु श्लोक की रचना करने के लिये पत्र, मसिपात्र और कलम लाने के लिए उद्यत होती है, उसी प्रकार यह विशारदा अर्थात् शरद ऋतु से रहित वर्षा ऋतुलोकोपकार के लिए मानों श्लोक रचने को वृक्षों के पत्र रूपी कागज, बादल रूपी दवात और धान्य रूप कलम को अपना रही है। पुनः हे विचारशील मित्र! उक्त कार्य को सम्पन्न करने के लिए यह बादल बार-बार शीघ्रता कर रहा है। "आशु" नाम नाना प्रकार के धान्यों का भी है, सो यह मेघ जल-वर्षा करके धान्यों को शीघ्र उत्पन्न कर रहा है। उक्त पद्य में कहा तो गया है विशारदा स्त्री के सम्बन्ध में, किन्तु अर्थ अभिव्यक्त हो रहा है वर्षा-ऋतु सम्बन्धी। अतः यहाँ समासोक्ति है। 11. काव्यलिंग
लक्षण - 'काव्यलिंग हेतोर्वाक्यपदार्थता।12
जहाँ कोई बात कही जाये और उसका हेतु उपस्थित किया जाये वहाँ काव्यलिंग होता है। उदाहरण
अन्येऽपि बहवो जाताः कुमारश्रमणा नराः । सर्वेष्वपि जयेष्वग-गतः कामजयो यतः।। 41।।
-वीरो.सर्ग.8। अन्य भी बहुत से मनुष्य कुमार श्रमण हुए हैं अर्थात विवाह न करके कुमार-काल में दीक्षित हुए हैं क्योंकि सभी विजयों में काम पर विजय पाना अग्रगण्य है।