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वीरोदय का काव्यात्मक मूल्यांकन 12. अपहुति
लक्षण – 'प्रकृतं यन्निषिध्यान्यत्साध्यते सा त्वपकुतिः।'
अर्थ – जहाँ उपमेय का निषेध कर उपमान की स्थापना की जाती है, वहाँ अपहुति अलंकार होता है। वीरोदय में आचार्यश्री ने शरत्कालीन आकाश-वर्णन में अपहुति का सुन्दर प्रयोग किया है। उदाहरण - तारापदेशान्मणिमुष्ठि नारात्प्रतारयन्ती विगताधिकारा। सोमं शरत्सम्मुखमीक्षमाणा रूषेव वर्षा तु कृतप्रयाणा।। 9।।
-वीरो.सर्ग.211 चन्द्रमा को शरद-ऋतु के सम्मुख देखती हुई अपने अधिकार से वंचित वर्षा-ऋतु मानों रूष्ट होकर तारों के बहाने से मुट्ठी में भरी हुई मणियों को फेंक कर प्रतारणा करती हुई चली गई।
___ वर्षाकाल में आकाश मेघों से ढका रहता है तब चन्द्रमा और तारे दिखाई नहीं देते। शरदकाल में आकाश स्वच्छ हो जाने से चन्द्रमा, तारे दिखाई देने लगते हैं। कवि ने इसी प्रस्तुत बात का निषेध कर इस अप्रस्तुत बात का विधान किया है कि पहले चन्द्रमा वर्षा के अधिकार में था और तारे उसकी मुट्ठी में थे किन्तु शरत्काल आने पर चन्द्रमा इसके अधिकार में नहीं रहा। तब क्रोध में आकर तारों के बहाने से मुट्ठी में भरी मणियों को भी उसने फेंक दिया। यहाँ पर तारों के स्थान पर मणियों का स्थापन होने से अपहुति अलंकार है। 13. एकावली अलंकार -
लक्षण -
स्थाप्यतेऽपोहते वापि यथापूर्व परं परम् । विशेषणतया यत्र वस्तु सैकावली द्विधा ।।4
जहाँ पूर्व वस्तु के प्रति उत्तर वस्तु विशेषण रूप से रखी जाए अथवा हटायी जाय वहाँ एकावली अलंकार होता है। वह दो प्रकार का