Book Title: Viroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Kamini Jain
Publisher: Bhagwan Rushabhdev Granthmala
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वीरोदय का काव्यात्मक मूल्यांकन
203 जाता है वह अर्थान्तरन्यास साधर्म्य व वैधर्म्य से दो प्रकार का होता है। आचार्य श्री ज्ञानसागर की किसी भी स्तुति में अर्थान्तरन्यास अलंकार की छटा परिलक्षित होती है - उदाहरण - न चातकीनां प्रहरेत् पिपासां पयोदमाला किमु जन्मना सा। युष्माकमाशंकितमुद्धरेयं तर्के रूचिं किन्न समुद्धरेयम् ।। 22 ||
-वीरो.सर्ग.5। यदि मेघमाला प्यास से व्याकुल चातकियों की प्यास नहीं बुझाती है तो उसके जन्म से क्या लाभ? तुम सबकी आशंकाओं को मैं क्यों न समाप्त करूँ और तर्क में रूचि क्यों न धारण करूँ ?
प्रस्तुत पद्य की प्रथम पंक्ति में समान्य बात कही गई है। उसका समर्थन द्वितीय पंक्ति के विशेष कथन से किया गया है। अतः यहाँ अर्थान्तरन्यास अलंकार है।
वीर प्रभु की माता की गर्भकालीन शारीरिक अवस्था का वर्णन करने वाला एक उदाहरण हैकवित्ववृत्येत्युदितो न जातु विकार आसीज्जिनराजमातुः। स्याद्दीपिकायां मरूतोऽधिकारः क्व-विद्युतः किन्तु तथातिचारः ।। 11 ।।
-वीरो.सर्ग.6। यहाँ ऊपर की पंक्ति रूप विशेष का नीचे की पंक्ति रूप सामान्य से समर्थन किये जाने के कारण अर्थातरन्यास है। 10. समासोक्ति
लक्षण - 'परोक्तिर्भेदकैः श्लिष्टै: समासोक्तिः ।।
जहाँ समान विशेषांकों, समान कार्यों और समान लिंग से उपमेय से अन्य अर्थात् अप्रस्तुत अर्थ अभिव्यक्त होता है वह संक्षेप में उक्ति अर्थात् समासोक्ति कही गयी है -