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वीरोदय का काव्यात्मक मूल्यांकन
य आसीन्नीतिज्ञोऽभ्युचितपरिवाराय मतिमान्। प्रभो! रीतिज्ञः स्यात्तु विकलविकल्पप्रगतिमान् ।। 46 ।।
-वीरो.सर्ग.17। 15. मन्दाक्रान्ता - एक ही स्थल पर प्रयुक्त मन्दाक्रान्ता छन्द का लक्षण है। लक्षण - ‘मन्द्राक्रान्ताम्बुधिरसनगैर्मोभनौ तौ ग युग्यम् ।'
निःसन्देह कवि की काव्यात्मकता उन्हें महाकाव्योचित गरिमा प्रदान करने में पूर्ण समर्थ है। सूक्तियाँ - 1. पापप्रवृत्तिः खलु गर्हणीया - पाप में प्रवृत्ति करना अवश्य
निन्दनीय है। 17/22 पापादपेतं विदधीत चित्तं समस्ति शौचाय तदेकवित्तम् ।। 17/23 || अपने चित्त को पाप से रहित करें - यही एक उपाय
पवित्र (शुद्ध) होने के लिये कहा गया है। सन्दर्भ - 1. महाकवि ज्ञानसागर के काव्य - एक अध्ययन पृ. 18-36 | 2. पाणिनीय शिक्षा श्लोक - 41-42 । 3. आचार्य विश्वनाथ, साहित्यदर्पण, 3-31 |