Book Title: Viroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Kamini Jain
Publisher: Bhagwan Rushabhdev Granthmala
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182 वीरोदय महाकाव्य और म. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन कवि की काव्यात्मकता
महाकवि आचार्य ज्ञानसागर का काव्यत्व, काव्य की कसौटी पर खरा उतरता है। मानव-चरित तथा मानव-आदर्श प्रस्तुत करना इस महाकाव्य का प्रमुख लक्ष्य रहा है। महाकवि ने अपनी उक्तियों को लाक्षणिकता एवं व्यंजकता से मण्डित कर/ उसमें वक्रता लाकर हृदयस्पर्शी बनाया है, जिससे वीरोदय की भाषा में अपूर्व काव्यात्मकता आविर्भूत हुई है। महाकवि ने भाषा को काव्यात्मक बनाने वाले प्रायः सभी शैलीय उपादानों का प्रयोग किया है। उपचार वक्रता, प्रतीक-विधान, अलंकार-योजना, मुहावरे, लोकोक्तियाँ, सूक्तियाँ आदि सभी तत्त्वों से उनकी भाषा मण्डित है। 'काव्य' शब् कव् धातु के ण्यत् प्रत्यय के योग से निष्पन्न हुआ है। ‘कव' का तात्पर्य है, वर्णन करना। इस प्रकार "काव्य" शब्द का अर्थ है - कविकृत किसी पदार्थ का सुन्दर वर्णन। काव्य के प्रमुख अंग – किसी भी व्यक्ति के स्वरूप का ज्ञान करने के लिए हम उसके नख-शिख का आलोचन करते हैं। इसी प्रकार काव्य का स्वरूप जानने के लिए हमें उसके प्रमुख अंगों के विषय में जानना चाहिए। शब्द और अर्थ - किसी पदार्थ का वर्णन करने के लिये सार्थक शब्दावली का सहारा लिया जाता है जिसका कुछ न कुछ अर्थ अवश्य निकलता है। अलंकार
पुरूष अपने को सुसज्जित करने तथा समृद्धि-बहलता को दर्शाने को लिए और स्त्रियाँ अपने सौभाग्य को सूचित करने के लिए कटक, कुण्डल, हारादि अलंकारों का उपयोग करती हैं। इसी प्रकार कवि पाडित्य-प्रदर्शन के लिए अपनी कविता-कामिनी को अनुप्रास, उपमा, श्लेष इत्यादि से सुसज्जित करता है। एक यशस्वी व्यक्ति के लिए कुण्डलादि आवश्यक नहीं, इसी प्रकार कवि के काव्य का भावपक्ष प्रबल होने पर काव्य के लिए उपमा-अनुप्रासादि की आवश्यकता नहीं है।