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वीरोदय का काव्यात्मक मूल्यांकन
की योजना कर सके। अनुरूप छन्द में वर्णित विषय मर्मस्पर्शी, हृदयावर्जक व रोचक हो जाता है । अतः कवि मनोवैज्ञानिक व संगीतज्ञ भी होता है । प्राप्त मनोगत भावों के सच्चे परिवाहक छन्द ही है । लय छन्दों का प्राण है । नाद में सुसंगता और सुषमामय कम्पन को 'लय' कहते हैं। जैसे नाद का कम्पन ही जीवन का चिन्ह है । उसी प्रकार कविता के जीवन का चिन्ह छन्द है । छन्द हमारे जीवन में विशेष प्रेरणा भरते हैं ।
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काव्य की पद्यात्मक विधा की रचना तो पूर्णतया छन्दोबद्ध पद्यों में ही की जाती है। अतः इस विधा में छन्दों का महत्त्व अत्यधिक है। गद्यात्मक विधा में छन्दों का इतना महत्त्व तो नहीं होता, किन्तु गद्य कवि भी अपने काव्यों में यत्र-तत्र छन्दोंबद्ध पद्यों का प्रयोग करके छन्दों के महत्त्व का उद्घोष करते हैं । जहाँ किसी न किसी वृत्त विशेष की सिद्धि होने लगती है। ऐसे ही स्थलों को सहित्यदर्पणकार ने “वृत्तगन्धि” गद्यकाव्य माना है 1
नाटकों में भी जब कोई पात्र अपने कथन की पुष्टि करना चाहता है या किसी भाव विशेष का अभिनय करता है, तब शीघ्र ही छन्दोबद्ध पद्यों का प्रयोग करता है । मात्रिक छन्दों में मात्राओं की और वर्णिक - छन्दों में वर्ण की व्यवस्था से पद्यों को निबद्ध किया जाता है। साथ ही सुकवि यह भी ध्यान रखते हैं कि कौन से छन्द वीररस के वर्णन में, कौन से प्रकृति - वर्णन में, कौन भक्ति भाव प्रकट करने में सहायक होंगे ? आदि । काव्य को आह्लाद एवं प्राणवान बनाने में छन्द महत्त्वपूर्ण भूमिका अभिनीत करते हैं। अतः कोई काव्य - शास्त्री और काव्य-प्रणेता कला -पक्ष के इस अंग की उपेक्षा नहीं करता। आचार्यश्री ज्ञानसागर ने अपने काव्यों में प्रचलित व अप्रचलित दोनों प्रकार के छन्दों का प्रयोग किया है । वीरोदय में 988 श्लोकों को 18 छन्दों में निबद्ध किया है।
उपजाति छन्द
वृत्तरत्नाकर में बताया है कि जहाँ इन्द्रवज्रा व उपेन्द्रवज्रा छन्दों के चरण मिलाकर छन्द बनाये जाते हैं, वहाँ दो वृत्तों का सांकर्य होने से