Book Title: Viroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Kamini Jain
Publisher: Bhagwan Rushabhdev Granthmala
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वीरोदय महाकाव्य और भ. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन
पौराणिक आरव्यानों का दिग्दर्शन
जैन - परम्परा अवन्ती में चन्द्रगुप्त का राज्यारोहण महावीर निर्वाण के 215 वर्ष पश्चात् मानती है। यह ऐतिहासिक तथ्य है कि चन्द्रगुप्तमौर्य ने पाटिलपुत्र (मगध) में राज्यारोहण के 10 वर्ष पश्चात् अवन्ती में अपना राज्य स्थापित किया था। इस प्रकार इतिहास और जैन - परम्परा के समन्वित आलोक में महावीर का निर्वाण ई. पू. 527 सिद्ध होता है ।
प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. आर. सी. मजूमदार, डॉ. एच. सी. राय चौधरी और डॉ. के. के. दत्त द्वारा लिखित 'एन एडवांस हिस्ट्री ऑफ इण्डिया' – में महावीर की निर्वाण - तिथि ई. पू. 528 मानी गई है। यद्यपि इन विद्वानों ने इस तिथि को निर्विवाद नहीं बताया है और इसकी असंगतियोंकी ओर इंगित करते हुए हेमचन्द्र के उल्लेखों के साथ विरोध बतलाया है। हेमचन्द्र ने चन्द्रगुप्त मौर्य के 155 वर्ष पूर्व महावीर का निर्वाण बताया है। 215 वर्ष पूर्व नहीं । इन सब विसंगतियों के रहने पर भी उक्त विद्वान् तीर्थंकर महावीर की निर्वाण तिथि 15 अक्टूबर ई. पू. 527 ही मानते हैं ।
'तित्थोगालीयपयन्ना' में बताया गया है कि जिस रात्रि में अर्हत् महावीर तीर्थंकर का निर्वाण हुआ, उसी रात में अवन्ति में पालक का राज्याभिषेक हुआ। अतः 60 वर्ष पालक के, 150 नन्दों के, 160 मौर्यों के, 35 पुष्पमित्रके, 60 बलमित्र भानुमित्र के 40 नभसेन के और 100 वर्ष गर्दभिल्लों के व्यतीत होने पर शक राजा का शासन हुआ ।
जं स्यणि सिद्धिगओ, अरहा तित्थकरो महावीरो । तं रयणिमवंतीए, अभिसित्तो पालओं राया ।। पालगरण्णो सट्टी, पुण पण्णसयं वियाणि णंदाणं । मुरियाणं सद्विसयं, पणतीसा पूसमित्ताणं ( तस्य ) । । बलमित्त - भाणुमित्ता, सद्वा चत्ता य होंति नहसेणा । गद्दभसयमेगं पुण, पडिवन्नो तो सगो राया । ।