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वीरोदय का स्वरूप कुण्ड में जमालि व प्रियदर्शना भी अपने-अपने जनसमूह के साथ भगवान से दीक्षा ग्रहण कर तपःसाधना में लग गयी।
चम्पानगरी में महावीर के उपदेश से महाराज दत्त तो प्रभावित हुए ही, राजकुमार 'महाचन्द्र भी इतना अधिक प्रभावित हुआ कि राज्य-वैभव और 500 रानियों को त्याग कर प्रव्रज्या स्वीकार कर तपो-साधना में लग गया। राजगृही में भी राजा श्रेणिक ने बड़ी श्रद्धा के साथ उनका स्वागत किया। जन-सम्बोधन के लिए बड़ी सुन्दर व्यवस्था की गयी। अपार जन-समूह महावीर के सदुपदेशों से कृत-कृत्य हुआ। एक दिन राजा श्रेणिक महावीर से ज्ञानचर्चा के समय एक कोढ़ी के वचनों से बड़े चकित हुए। अपनी शंकाओं का समाधान पाकर श्रेणिक इतने प्रभावित हुए कि महावीर के प्रति स्वयं असीम श्रद्धा पूर्वक घोषणा कराई कि जो कोई भी भगवान के पास प्रव्रज्या ग्रहण करेगा, उसे वे यथोचित सहयोग देंगे। राजा चेटक एवं सेनापति सिंह पर (धर्म) प्रभाव
वैशाली के राजा चेटक का वंश तो पहिले से ही वीर भगवान के मार्ग का अनुयायी था। भगवान का वहाँ विहार होने से वह और भी जैनधर्म में दृढ़ हो गया। यथा -
वैशाल्या भूमिपालस्य चेटकस्य समन्वयः। पूर्वस्मादेव वीरस्य मार्ग माढौकितोऽभवत्।। 1911
-वीरो.सर्ग.15। जब भगवान महावीर का समवशरण वैशाली में पहुँचा तो यहाँ के महाराज चेटक और रानी सुभद्रा परिवार सहित तीर्थंकर महावीर की वंदना के लिये गये। उन्होंने महावीर के मुख से सुना- 'मनुष्य सहस्रों दुर्दान्त शत्रुओं पर सरलता से विजय प्राप्त कर सकता है, पर अपने ऊपर विजय पाना कठिन है। बाहरी शत्रुओं को परास्त करने से सुख-शान्ति प्राप्त नहीं होती है। सुख-शान्ति तो अहिंसामय वातावरण में ही प्राप्त होती है।
. महावीर के उपदेशों से विरक्त होकर चेटक ने भी दिगम्बर-दीक्षा धारण कर विपुलाचल पर्वत पर तपश्चरण प्राप्त किया। मुनि होने पर