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वीरोदय महाकाव्य और भ. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन
7. इसमें भगवान महावीर के जन्ममहोत्सव का भी बड़ा दिव्य - वर्णन है। सर्व प्रथम देवों ने और तत्पश्चात् राजा सिद्धार्थ ने भगवान महावीर का जन्म - महोत्सव धूम-धाम से मनाया है।
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8. इसमें तीन संवाद विशेष हैं (क) रानी प्रियकारिणी और राजा सिद्धार्थ का संवाद (ख) रानी प्रियकारिणी और देवी संवाद (ग) राजा सिद्धार्थ और वर्द्धमान संवाद |
9. कवि ने देवालय और समवशरण - मण्डप का भी वर्णन इस काव्य में किया है।
10. काव्य के अन्त में वर्णित "जैनधर्म एवं दर्शन" कवि को सच्चा जैनधर्मी सिद्ध करता है
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11. इस काव्य का नाम काव्य के नायक के नाम पर ही आधारित है । नायक का नाम है महावीर और महावीर के अभ्युदय से शान्तरस की स्थापना ही कवि का लक्ष्य है ।
12. इसमें अनेक उत्तम अलंकारों का भी प्रयोग है । 'जयोदय' की तरह 'वीरोदय' भी अन्त्यानुप्रास से अलंकृत है। यमक, उपमा, अपहुति, उत्प्रेक्षा, भ्रान्मिान, परिसंख्या आदि अलंकारों की छटा इसमें विशेष दर्शनीय है ।
इसके अतिरिक्त काव्य - शास्त्रियों द्वारा स्वीकृत महाकाव्य में सर्ग सम्बन्धी, भावपक्ष सम्बन्धी, कलापक्ष सम्बन्धी आदि अनेक विशेषताएँ दृष्टिगोचर होती हैं। सहृदय को प्रभावित करने में यह काव्य पूर्ण समर्थ है । निःसन्देह इसकी महत्ता अवर्णनीय है।
भगवान महावीर के जन्म से पूर्व भारत की सामाजिक एवं धार्मिक स्थिति का चित्रण
भगवान महावीर के जन्म से पूर्व भारत की सामाजिक एवं धार्मिक व्यवस्था की बागड़ोर ब्राह्मणों के हाथों में थी । उस समय उन्होंने यह प्रसिद्ध कर रखा था कि यज्ञ मेते पशवो हि सृष्टा और "वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति" अर्थात सभी पशु यज्ञ के लिये ब्रह्मा ने रचे