Book Title: Viroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Kamini Jain
Publisher: Bhagwan Rushabhdev Granthmala
View full book text
________________
वीरोदय महाकाव्य और म. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन साँप की लकीर पीटने से क्या लाभ है ? कुछ नहीं। हाँ, वह मेरे आनन्द रूपी तालाब का हंस व्रतपूर्वक मरा, यह भी अच्छा हुआ। गतं न शोचामि कृतं न मन्ये किं ताडनेनाहिपदप्रजन्ये । तदुत्तमं यव्रतपूर्वकं स ययौ ममानन्दतटाकहंसः ।। 33 ।।
- दयो. च. द्वितीय लम्ब। मुझे भी वही व्रत ले लेना चाहिये। इस थोड़े से दिन में जीवन के लिये इतर प्राणियों का संहार करना ठीक नहीं है। इस प्रकार उसने अपने मन में विचार किया। उसी समय वही साँप जिसने कि मृगसेन को डसा था, आकर उसे भी डस गया और वह मर कर अहिंसाव्रत की उपादेयता के कारण गुणपाल नाम के सेठ की सेठानी गुणश्री की कूख से विषा नाम की लड़की हुई।
आचार्यश्री ने न केवल जैनधर्मावलंबियों के ही हितार्थ अपितु मानवमात्र के कल्याण के लिये अनेक काव्यों की रचना की। उन्होंने मृगसेन धीवर का कल्याण करने के लिये अहिंसांणुव्रत की पुष्टि रूप भावात्मक दयोदय काव्य की, सत्य और अचौर्य की पुष्टि के लिये भद्रोदय काव्य की, ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिये 'वीरोदय' काव्य की और परिग्रह-परिमाण व्रत की रक्षा के लिये 'जयोदय महाकाव्य' की रचना की। सरागी एवं वीतरागी व्यक्ति की रचना में अन्तर्भेद होता है। वीतरागी की रचना हमें इस लोक सम्बन्धी नीतियों का सदुपदेश देने के साथ ही साथ परलोक में भी अभ्युदय प्राप्त करने के मार्ग को तेज और वजनदार शब्दों के द्वारा हृदय-तल पर सदा के लिये स्थापित कर देती है।
प्रायः सभी जैनचार्यों की कथनी में पूर्व-भव का सत्य वर्णन होता ही है और यह आस्तिक्य भावना का द्योतक भी है- ऐसे वर्णन भी भद्रोदय ग्रन्थ में अत्यन्त सरल एवं रोचक रूप से वर्णित किये गये हैं। भद्रोदय महाकाव्य खांड की रोटी के समान मधुर एवं रस पूर्ण है। संस्कृत के सहृदय महानुभावों के लिये तो यह अलंकार पूर्ण रसास्वाददायी है ही