Book Title: Viroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Kamini Jain
Publisher: Bhagwan Rushabhdev Granthmala
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वीरोदय महाकाव्य और भ. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन सारं कृतीष्टं सुरसार्थरम्यं विपल्लवाभावतयाऽभिगम्यम्। समुल्लसत्कल्पलतैकतन्तु त्रिविष्टपं काव्यमुपैम्यहन्तु।। 23।।
- वीरो. सर्ग.1। इसलिये कवि ने 'त्रिविष्टपं काव्यमुपैम्यहंतु' कहकर साक्षात् स्वर्ग माना है। वीरोदय महाकाव्य 22 सर्गों में निबद्ध है। उसकी संक्षिप्त कथावस्तु इसप्रकार है - भगवान महावीर के जन्म से पूर्व स्थिति -
___ भगवान महावीर के जन्म से पूर्व सारे भारत की सामाजिक स्थित . अत्यधिक दयनीय थी। चारों ओर हिंसा असत्य, शोषण, दम्भ, और अनाचार का साम्राज्य था। ब्राम्हण – संस्कृति के बढ़ते हुये वर्चस्व में श्रमण-संस्कृति दबी जा रही थी। धर्म का स्थान याज्ञिक क्रियाकांडों ने ले लिया था। यज्ञों में घृत, मधु, आदि के साथ पशु भी होमे जाते थे और डंके की चोट पर यह घोषणा की जाती थी कि भगवान ने यज्ञ के लिये ही पशुओं की रचना की है। धर्म का स्थान अधर्म ने ले लिया था। मानवता कराह रही थी। इस प्रकार की धार्मिक, सामाजिक एवं आर्थिक विषम परिस्थितियों के समय भ. महावीर ने जन्म लिया।' जन्म स्थान कुण्डनपुर
____ लोक-विश्रुत भारत वर्ष के 6 खंडों में आर्य - खंड सर्वोत्तम हैं। इसी आर्य-खंड में स्वर्गोपम एक विदेह देश है। इस देश के सर्वश्रेष्ठ नगर का नाम कुण्डनपुर है, जो पहले अत्यन्त वैभवशाली था। वीरोदय में उल्लेख है - समस्तिभोगीन्द्रनिवास एष वप्रच्छलात्तत्परितोऽपि शेषः । समास्थितोऽतो परिखामिषेण निर्भीक एवानु बृहद्विषेण।। 24 ।।
___-वीरो. सर्ग. 21 नाकं पुरं सम्प्रवदाम्यहं तत्सुरक्षणा यत्र जनाः वसन्तः। सुरीतिसम्बुद्धिमितास्तु रामा राजा सुनाशीर-पुनीत-धामा।। 22 ।।
-वीरो. सर्ग. 2।