Book Title: Viroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Kamini Jain
Publisher: Bhagwan Rushabhdev Granthmala
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- अध्याय - 3 वीरोदय का स्वरूप
___परिच्छेद -1 वीरोदय महाकाव्य का प्रतिपाद्य विषय
आचार्य ज्ञानसागर महाराज ने 'वीरोदय महाकाव्य' में भगवान महावीर जैसे सर्वश्रेष्ठ महापुरूष को अपनी कथा का नायक चुना है जिनका चरित उत्तरोत्तर चमत्कारी है। कवि ने यथास्थान सर्व ऋतुओं का वर्णन किया है तथा करूण, श्रृंगार और शान्तरसों का प्रमुखता से प्रतिपादन किया है। वस्तुतः ये तीन रस ही नवरसों में श्रेष्ठ माने गये हैं। दश सर्गों से अधिक सर्ग वाले काव्य को "महाकाव्य" कहा गया है। महाकाव्य के लिये आवश्यक है कि प्रत्येक सर्ग के अन्त में कुछ पद्य विभिन्न छन्दों के हों और यथास्थान देश, नगर, ग्राम, उद्यान, बाजार, राजा, रानी क्षेत्रादिक का ललित पद्यों में वर्णन किया गया हो। इस परिप्रेक्ष्य में 'वीरोदय एक महाकाव्य सिद्ध होता है।'
- 'वीरोदय महाकाव्य' ने श्लेष, उपमा, उत्प्रेक्षा वक्रोक्ति, रूपक, दृष्टान्त, आदि अनेक अलंकारों के द्वारा अपने को अलंकृत किया है। इस रचना का तुलनात्मक अध्ययन करने पर यह सहज में ही ज्ञात हो जाता है कि इस पर धर्मशर्माभ्युदय, चन्द्रप्रभचरित, मुनिसुव्रत-काव्य और नैषध-काव्य आदि का प्रभाव है, फिर भी वीरोदय में अपनी मौलिकता भी है। वास्तव में वीरोदय एक महाकाव्य तो है ही, पर इसके भीतर जैनइतिहास और पुरातत्व के भी दर्शन होते हैं। अतः इसे इतिहास और पुराण भी कह सकते हैं। संक्षेप में कहा जाये तो इस एक काव्य के पढ़ने पर ही भ. महावीर के चरित के साथ ही जैनधर्म और जैनदर्शन का भी परिचय प्राप्त होगा और काव्य-सुधा का पान तो सहज में होगा ही। यथा -