Book Title: Viroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Kamini Jain
Publisher: Bhagwan Rushabhdev Granthmala
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12 वीरोदय महाकाव्य और भ. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन सिरिविजयचंद केवलिचरियं
इस चरितकाव्य के रचयिता श्री चन्दप्रभ महत्तर हैं। ये अभयदेवसूरि के शिष्य थे। इस चरिकाव्य की रचना वि. सं. 1127 में हुई। महाराष्ट्री प्राकृत में इस ग्रन्थ की रचना की गई है। यत्र-तत्र अर्धमागधी का भी प्रभाव है। इस काव्य में कुल 1063 गाथाएँ हैं। इस काव्य का उद्देश्य जिनपूजा का माहात्म्य प्रगट करना है। महावीरचरियं (पद्यबद्ध)
प्राकृत में महावीरचरियं के नाम से दो चरितकाव्य उपलब्ध होते हैं। इस चरितकाव्य के रचयिता चन्द्रकुल के बृहद्गच्छीय उद्योतनसूरि के प्रशिष्य और आम्रदेवसूरि के शिष्य नेमिचन्द्र सूरि हैं। आचार्य पद प्राप्त करने के पूर्व इनका नाम देवेन्द्रगणि था। इस चरित-ग्रन्थ की रचना विक्रम संवत् 1141 में हुई है। इसमें भगवान महावीर के पूर्वभव दिये हैं, साथ ही आवश्यक-चूर्णि में आए हुये जीवन के भी सभी प्रसंग इसमें दिये गये हैं। लेखक ने चरित-ग्रन्थ को रोचक बनाने का पूर्ण प्रयास किया है। कथावस्तु की सजीवता के लिये वातावरण का मार्मिक चित्रण किया है। अनुकूल और प्रतिकूल दोनों प्रकार की परिस्थतियों में राग-द्वेष की अनुभूतियाँ किस प्रकार घटित होती हैं, इसका विवरण बहुत ही सटीक रूप में प्रस्तुत किया गया है। मिथ्यात्व और सम्यक्त्व की अभिव्यंजना भी पात्रों के क्रिया-कलापों द्वारा अत्यन्त सुन्दर हुई है।
महावीरचरियं चरितकाव्य में मनोरंजन के जितने भी तत्त्व हैं, उनसे कहीं अधिक मानसिक तृप्ति के साधन भी विद्यमान हैं। मारीचि अहंकार से जीवन के आधारभूत विवेक और सम्यक्त्व की उपेक्षा करता है। फलतः उसे अनेक बार जन्म ग्रहण करना पड़ता है, वह अपने संसार की सीमा बढ़ाता है। चरित-ग्रंथ होते हुये भी लेखक ने मर्मस्थलों की सम्यक योजना की है। समग्र ग्रन्थ पद्य-बद्ध है। भाषा सरल व प्रभावपूर्ण है।' सुदंसणाचरियं
'सुदंसणाचरिय' चरितकाव्य की रचना देवेन्द्रसूरि ने की है। इनके