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आचार्यश्री ज्ञानसागर और उनके महाकाव्यों की समीक्षा पुनर्जन्मवाद और कर्मफलवाद का वर्णन इस प्रकार किया गया है कि पाठक पूर्वजन्म और वर्तमान जन्म का तालमेल बिठाते समय वास्तविक कथा भूल जाता है। वैसे भी इस काव्य को रचने का उद्देश्य किसी रोचक घटना विशेष को प्रस्तुत करना नहीं है कथा तो काव्य के उद्देश्य (अस्तेय की शिक्षा) की सहायिका के रूप में आई है। सम्पूर्ण काव्य पढ़ने पर एक ही निष्कर्ष निकलता है- 'सत्यमेव जयते नानृतम्'। इसके अतिरिक्त इस काव्य की रचना का दूसरा उद्देश्य है – काव्य के माध्यम से जैन धर्म के सिद्धान्तों को प्रस्तुत करना। इस काव्य का मुख्य उद्देश्य 'नायक का वैराग्य एवं सत्य की विजय" में छिपा हुआ है।
अन्त में भद्रमित्र सांसारिक पदार्थों का परित्याग करके केवलज्ञान प्राप्त कर लेता है। अतः सत्य की विजय होती है, यही कथा का मुख्य उद्देश्य है। सन्दर्भ - 1. ब्र. पं. भूरामल शास्त्री, समुद्रदत्तचरित, पृ. 3। 2. महाकवि ज्ञानसागर के काव्य एक अध्ययन, पृ. 44-491 3. महाकवि ज्ञानसागर के काव्य एक अध्या, पृ. 136-137 |